December 20, 2024

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ये सबूत देखकर आप भी स्वीकार करेंगे, रामायण काल के अस्तित्व को !

रामायण काल को लेकर अलग-अलग मान्यताएं हैं। ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं होने के कारण कुछ लोग जहां इसे नकारते हैं, वहीं कुछ इसे सत्य मानते हैं। हालांकि इसे आस्था का नाम दिया जाता है, लेकिन नासा द्वारा समुद्र में खोजा गया रामसेतु ऐसे लोगों की मान्यता को और पुष्ट करता है। रामायण को आज के ज़माने में कई लोग शक की निगाह से देखते हैं।

कई लोग हिन्दू धर्म के गौरवशाली इतिहास को झुठलाने की कोशिश भी करते हैं। यहाँ तक की आज का हिन्दू युवा भी पौराणिक कथाओं को संदेह की द्रष्टि से देखता है। लेकिन हम आपको यहाँ पर उन साक्ष्यों के बारे में बताएँगे जिससे सिद्ध हो जाएगा की रामायण कोई झूठी रचना नहीं है।

आइए देखते हैं कुछ ऐसे ही साक्ष्य, जो रामायण काल के अस्तित्व को स्वीकारते हैं…

रावण का महल :

कहा जाता है कि लंकापति रावण के महल, जिसमें अपनी पटरानी मंदोदरि के साथ निवास करता था, के अब भी अवशेष मौजूद हैं। यह वही महल है, जिसे पवनपुत्र हनुमान ने लंका के साथ जला दिया था।

सुग्रीव गुफा :

रामायण की एक कहानी के अनुसार वानरराज बाली ने दुंदुभि नामक राक्षस को मारकर उसका शरीर एक योजन दूर फेंक दिया था। हवा में उड़ते हुए दुंदुभि के रक्त की कुछ बूंदें मातंग ऋषि के आश्रम में गिर गईं। ऋषि ने अपने तपोबल से जान लिया कि यह करतूत किसकी है।

क्रुद्ध ऋषि ने बाली को शाप दिया कि यदि वह कभी भी ऋष्यमूक पर्वत के एक योजन क्षेत्र में आएगा तो उसकी मृत्यु हो जाएगी। यह बात उसके छोटे भाई सुग्रीव को ज्ञात थी और इसी कारण से जब बाली ने उसे प्रताड़ित कर अपने राज्य से निष्कासित किया तो वह इसी पर्वत पर एक कंदरा में अपने मंत्रियों समेत रहने लगा। यहीं उसकी राम और लक्ष्मण से भेंट हुई और बाद में राम ने बाली का वध किया और सुग्रीव को किष्किंधा का राज्य मिला।

अशोक वाटिका :

अशोक वाटिका लंका में स्थित है, जहां रावण ने सीता को हरण करने के पश्चात बंधक बनाकर रखा था। ऐसा माना जाता है कि एलिया पर्वतीय क्षेत्र की एक गुफा में सीता माता को रखा गया था, जिसे सीता एलिया नाम से जाना जाता है। यहां सीता माता के नाम पर एक मंदिर भी है।

यहीं पर आंजनेय हनुमान ने निशानी के रूप में राम की अंगूठी सीता को सौंपी थी। ऐसा माना जाता है कि अशोक वाटिका में नाम अनुरूप अशोक के वृक्ष काफी मात्रा में थे। राम की विरह वेदना से दग्ध सीता अपनी इहलीला समाप्त कर लेना चाहती थीं। वे चाहती थीं कि अग्नि मिल जाए तो वे खुद को अग्नि को समर्पित कर दें। इतना हीं नहीं उन्होंने नूतन कोंपलों से युक्त अशोक के वृक्षों से भी अग्नि की मांग की थी।

तुलसीदास जी ने लिखा भी है- नूतन किसलय अनल समाना, देहि अगिनि जन करहि निदाना। अर्थात तेरे नए पत्ते अग्नि के समान हैं। अत: मुझे अग्नि प्रदान कर और मेरे दुख का शमन कर।

रामसेतु :

रामसेतु जिसे अंग्रेजी में एडम्स ब्रिज भी कहा जाता है, भारत (तमिलनाडु) के दक्षिण पूर्वी तट के किनारे रामेश्वरम द्वीप तथा श्रीलंका के उत्तर पश्चिमी तट पर मन्नार द्वीप के मध्य चूना पत्थर से बनी एक श्रृंखला है। भौगोलिक प्रमाणों से पता चलता है कि किसी समय यह सेतु भारत तथा श्रीलंका को भू-मार्ग से आपस में जोड़ता था। यह पुल करीब 18 मील (30 किलोमीटर) लंबा है।

ऐसा माना जाता है कि 15वीं शताब्दी तक पैदल पार करने योग्य था। एक चक्रवात के कारण यह पुल अपने पूर्व स्वरूप में नहीं रहा। रामसेतु एक बार फिर तब सुर्खियों में आया था, जब नासा के उपग्रह द्वारा लिए गए चित्र मीडिया में सुर्खियां बने थे।

समुद्र पर सेतु के निर्माण को राम दूसरी बड़ी रणनीतिक जीत कहा जा सकता है, क्योंकि समुद्र की तरफ से रावण को कोई खतरा नहीं था और उसे विश्वास था कि इस विराट समुद्र को पार कोई भी उसे चुनौती नहीं दे सकता।

रामायण कालीन 4 हवाईअड्डे :

पिछले 9 वर्षों से ये कमेटी श्री लंका का कोना कोना छान रही थी जिसके तहत कई छुट पुट जानकारी व् अवशेष भी मिलते रहे परन्तु पिछले 4 सालो में लंका के दुर्गम स्थानों में की गई खोज के दोरान रावण के 4 हवाईअड्डे हाथ लगे है ।

कमेटी के अध्यक्ष अशोक केंथ का कहना है की रामायण में वर्णित लंका वास्तव में श्री लंका ही है जहाँ उसानगोडा , गुरुलोपोथा , तोतुपोलाकंदा तथा वरियापोला नामक चार हवाईअड्डे मिले है । उसानगोडा रावण का निजी हवाईअड्डा था तथा यहाँ का रनवे लाल रंग का है । इसके आसपास की जमीं कहीं काली तो कहीं हरी घास वाली है । जब हनुमान जी सीता जी की खोज में लंका गये तो वहां से लौटते समय उन्होंने रावण के निजी उसानगोडा को नष्ट कर दिया था ।

आगे केंथ ने बताया की अब तक उनकी टीम ने लंका के 50 दुर्गम स्थानों की खोज की है । इससे पूर्व पंजाब के अशोक केंथ सन 2004 में लंका में स्थित अशोक वाटिका खोजने के कारन सुर्खियों में आये थे ।

तत्पश्चात श्री लंका सरकार ने 2007 में श्री रामायण अनुसन्धान कमेटी का गठन किया तथा केंथ को इसका अध्यक्ष बनाया था ।

ये स्थान व् हवाईअड्डे आदि कितने पुराने ?

वेद विज्ञानं मंडल, पुणे के डा० वर्तक जी ने वालमिकी रामायण में वर्णित ग्रहों नक्षत्रों की स्थति तथा उन्ही ग्रहों नक्षत्रों की वर्तमान स्थति पर गहन शोध कर रामायण काल को लगभग 7323 ईसा पूर्व अर्थात आज से लगभग 9336 वर्ष पूर्व का बताया है । इस विषय पर उन्होंने एक पूरी पुस्तक भी लिख डाली है जिसमे उन्होंने लगभग सभी मुख्य घटनाओं की तिथि निर्धारित की है ।