महाभारत में अनेको विनाशकारी अस्त्रों एवं शस्त्रों का प्रयोग हुआ तथा इस युद्ध में बहुत से योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए व अनगिनत सैनिक मारे गए. परन्तु क्या आप को उन ऐसे 5 महाविनाशकारी अस्त्रों के बारे में बता है जो महाभारत में प्रयोग हुए थे. आइये आज हम आपको उन 5 महाविनाशकारी अस्त्रों से परिचित कराते है. लेकिन इससे पहले हम आपको अस्त्र एवं शस्त्र में भेद बता दे.
प्राचीन भारत अस्त्र शब्द का प्रयोग उन हथियारों के लिए किया जाता था जिन्हे मंत्रो द्वारा शक्ति प्रदान कर दूर से शत्रु पर फेंका जाता है. इन्हे अग्नि, वायु, विद्युत एवं यांत्रिक उपायों से प्रक्षेप किया जाता है वहीं शस्त्र शब्द का प्रयोग ऐसे हथियारों के लिए होता था जिनका प्रयोग शत्रु के निकट जाकर किया जाता था . शस्त्र के प्रहार से शत्रु को चोट पहुंचाई जाती थी तथा कुछ शस्त्र के प्रहार प्राणघातक होते थे.
ब्रह्माश्त्र :- यह संसार के रचियता परमपिता ब्र्ह्मा का अस्त्र है. यह अस्त्र अत्यधिक विकराल एवं अचूक है अर्थात यदि इस अस्त्र का प्रयोग किसी पर किया तो उसकी मृत्यु निश्चित है, यह अपने शत्रु का नाश करके ही वापस लोटता है. यदि इस अस्त्र का एक बार प्रयोग हो गया तो इसे तब तक नहीं रोका जा सकता जब तक इसे रोकने के लिए दूसरे ब्रह्माश्त्र का प्रयोग न किया जाए. प्राचीन काल के अस्त्रों में यह सर्वाधिक प्रसिद्ध था.
ब्रह्माश्त्र का प्रयोग महाभारत में अर्जुन और अश्वत्थामा के अलावा कर्ण जानता था. परन्तु अपने गुरु के श्राप के कारण कर्ण अपने अंत समय में इसके प्रयोग करने की विद्या भूल गया.
ब्र्ह्मशिरा :- ब्र्ह्मशिरा एक बहुत ही खतरनाक एवं महाविनाशकारी अस्त्र था जो बहुत ही कम युद्ध में प्रयोग हुआ. ऐसा कहा जाता है की यह ब्रह्माश्त्र से भी कई गुना विनाशकारी अस्त्र था तथा ब्र्ह्मा जी के चार सरो के नाम पर इसका नाम ब्र्ह्मशिरा पड़ा था .इसका प्रयोग महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण और गुरुद्रोण के अलावा सिर्फ अर्जुन व अश्वत्थामा जानते थे. परन्तु अश्वत्थामा को ब्र्ह्मशिरा के बारे में अधूरा ज्ञान था. अश्वत्थामा ब्र्ह्मशिरा को चलना तो जानता था परन्तु इस अस्त्र को वापस लेना उसे नहीं आता था.
जब महाभारत के युद्ध में एक बार अर्जुन और अश्वत्थामा का सामना हुआ था तब अश्वत्थामा ने अर्जुन पर ब्र्ह्मशिरा को प्रयोग किया उसके जवाब में अर्जुन ने भी अश्वत्थामा पर ब्रह्मशिरा का प्रयोग किया. परन्तु बाद में जब ऋषि मुनियों ने अर्जुन एवं अश्व्थामा को समझाया की इन दो महाविनाशकारी अस्त्रों के आपस में टकराने से पृथ्वी में प्रलय आ जायेगी अतः इन्हे वापस ले लो. तब अर्जुन ने ब्र्ह्मशिरा को वापस ले लिया परन्तु अश्वत्थामा को ब्रह्मशिरा वापस लेने का ज्ञान न होने के कारण उसने वह अस्त्र अर्जुन की पुत्रवधु उत्तरा के गृभ में चला दिया. भगवान श्री कृष्ण ने इस पाप के लिए अश्वत्थामा को कई वर्षो तक अनेक बीमारियों के साथ जीवित भटकने का श्राप दिया था.
वासवी शक्ति :- वासवी शक्ति अस्त्र भी अन्य महाविनाशकारी अस्त्रों के समान ही था तथा इसका सिर्फ एक बार ही प्रयोग हो सकता था . इसकी यह विशेषता था की यदि इसे एक बार अपने शत्रु पर छोड़ दिया जाये तो उसे कोई भी उसकी मृत्यु से नहीं बचा सकता था. वासवी शक्ति अस्त्र देवराज इंद्र का अस्त्र था जिसे एक बार दानवीर कर्ण ने अपने शत्रु अर्जुन के वध के लिए इंद्र से माँगा था. परन्तु कर्ण को वासवी शक्ति अस्त्र का प्रयोग न चाहते हुई भी अपने मित्र दुर्योधन के कहने पर अति शक्तिशाली योद्धा घटोत्कच पर करना पड़ा.
पाशुपत अस्त्र :- महादेव शिव का पाशुपत अस्त्र महाविनाशकारी अस्त्र है. इससे सम्पूर्ण विश्व का नाश कुछ ही पलो में हो सकता है. यह अस्त्र के संधान केवल दुष्टों के वध के लिए ही किया जा सकता है अन्यथा यह पलट कर इस अस्त्र का प्रयोग करने वाले का ही वध कर देता था.
नारायणास्त्र :- यह अस्त्र भी पाशुपत अस्त्र के समान ही अति विशाल एवं महाविनाशकारी है. इस नारायण अस्त्र से बचाव के लिए कोई भी अस्त्र नहीं है. यदि इस अस्त्र का प्रयोग एक बार किया जाता है तो समूर्ण संसार में कोई ऐसी शक्ति नहीं जो इसे रोक सके. इस अस्त्र को सिर्फ एक ही तरीके से रोका जा सकता है और वह है अपने सभी अस्त्र त्याग कर नर्मतापूर्वक अपने आप को समर्पित कर देना. क्योकि यदि शत्रु कहि भी नारायणास्त्र उसे ढूढ़कर उसका वध कर ही देता है. केवल इस सामने अपने आपको समर्पित कर देने पर ही यह प्रभाव रहित हो जाता है.
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