December 20, 2024

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शरद पूर्णिमा 2018 – शरद पूर्णिमा तिथि, व्रत, कथा व पूजा विधि !

पूर्णिमा तिथि हिंदू धर्म में एक खास स्थान रखती है। प्रत्येक मास की पूर्णिमा का अपना अलग महत्व होता है। लेकिन कुछ पूर्णिमा बहुत ही श्रेष्ठ मानी जाती हैं। अश्विन माह की पूर्णिमा उन्हीं में से एक है बल्कि इसे सर्वोत्तम कहा जाता है। अश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। इस पूर्णिमा पर रात्रि में जागरण करने व रात भर चांदनी रात में रखी खीर को सुबह भोग लगाने का विशेष रूप से महत्व है। इसलिये इसे कोजागर पूर्णिमा भी कहते हैं। आइये जानते हैं शरद पूर्णिमा का महत्व व व्रत पूजा विधि के बारे में।

शरद पूर्णिमा का महत्व

एक अध्ययन के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक होती है। रसाकर्षण के कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है, तब रिक्तिकाओं से विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है।

अध्ययन के अनुसार दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है।

शोध के अनुसार खीर को चांदी के पात्र में बनाना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधकता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं। हल्दी का उपयोग निषिद्ध है। प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा का स्नान करना चाहिए। रात्रि 10 से 12 बजे तक का समय उपयुक्त रहता है।

वर्ष में एक बार शरद पूर्णिमा की रात दमा रोगियों के लिए वरदान बनकर आती है। इस रात्रि में दिव्य औषधि को खीर में मिलाकर उसे चांदनी रात में रखकर प्रात: 4 बजे सेवन किया जाता है। रोगी को रात्रि जागरण करना पड़ता है और औ‍षधि सेवन के पश्चात 2-3 किमी पैदल चलना लाभदायक रहता है।

शरद पूर्णिमा व्रत की कथा

शरद पूर्णिमा की पौराणिक कथा भगवान श्री कृष्ण द्वारा गोपियों संग महारास रचाने से तो जुड़ी ही है लेकिन इसके महत्व को बताती एक अन्य कथा भी मिलती है जो इस प्रकार है। मान्यतानुसार बहुत समय पहले एक नगर में एक साहुकार रहता था। उसकी दो पुत्रियां थी। दोनों पुत्री पूर्णिमा को उपवास रखती लेकिन छोटी पुत्री हमेशा उस उपवास को अधूरा रखती और दूसरी हमेशा पूरी लगन और श्रद्धा के साथ पूरे व्रत का पालन करती। समयोपरांत दोनों का विवाह हुआ। विवाह के पश्चात बड़ी जो कि पूरी आस्था से उपवास रखती ने बहुत ही सुंदर और स्वस्थ संतान को जन्म दिया जबकि छोटी पुत्री के संतान की बात या तो सिरे नहीं चढ़ती या फिर संतान जन्मी तो वह जीवित नहीं रहती। वह काफी परेशान रहने लगी। उसके साथ-साथ उसके पति भी परेशान रहते। उन्होंने ब्राह्मणों को बुलाकर उसकी कुंडली दिखाई और जानना चाहा कि आखिर उसके साथ ऐसा क्यों हो रहा है। विद्वान पंडितों ने बताया कि इसने पूर्णिमा के अधूरे व्रत किये हैं इसलिये इसके साथ ऐसा हो रहा है। तब ब्राह्मणों ने उसे व्रत की विधि बताई व अश्विन मास की पूर्णिमा का उपवास रखने का सुझाव दिया। इस बार उसने विधिपूर्वक व्रत रखा लेकिन इस बार संतान जन्म के पश्चात कुछ दिनों तक ही जीवित रही। उसने मृत शीशु को पीढ़े पर लिटाकर उस पर कपड़ा रख दिया और अपनी बहन को बुला लाई बैठने के लिये उसने वही पीढ़ा उसे दे दिया। बड़ी बहन पीढ़े पर बैठने ही वाली थी उसके कपड़े के छूते ही बच्चे के रोने की आवाज़ आने लगी। उसकी बड़ी बहन को बहुत आश्चर्य हुआ और कहा कि तू अपनी ही संतान को मारने का दोष मुझ पर लगाना चाहती थी। अगर इसे कुछ हो जाता तो। तब छोटी ने कहा कि यह तो पहले से मरा हुआ था आपके प्रताप से ही यह जीवित हुआ है। बस फिर क्या था। पूर्णिमा व्रत की शक्ति का महत्व पूरे नगर में फैल गया और नगर में विधि विधान से हर कोई यह उपवास रखे इसकी राजकीय घोषणा करवाई गई।

पूर्णिमा व्रत पूजा विधि

पूर्णिमा ही नहीं किसी भी उपवास या पूजा का लिये सबसे पहले तो आपकी श्रद्धा का होना अति आवश्यक है। सच्चे मन से पूर्णिमा के दिन स्नानादि के पश्चात तांबे अथवा मिट्टी के कलश की स्थापना कर उसे वस्त्र से ढ़कें। तत्पश्चात इस पर माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें। यदि आप समर्थ हैं तो स्वर्णमयी प्रतिमा भी रख सकते हैं। सांयकाल में चंद्रोदय के समय सामर्थ्य अनुसार ही सोने, चांदी या मिट्टी से बने घी के दिये जलायें। 100 दिये जलायें तो बहुत ही उपयुक्त होगा। प्रसाद के लिये घी युक्त खीर बना लें। चांद की चांदनी में इसे रखें। लगभग तीन घंटे के पश्चात माता लक्ष्मी को यह खीर अर्पित करें। सर्वप्रथम किसी योग्य ब्राह्मण या फिर किसी जरुरतमंद अथवा घर के बड़े बुजूर्ग को यह खीर प्रसाद रूप में भोजन करायें। भगवान का भजन कीर्तन करते हुए रात्रि जागरण करें। सूर्योदय के समय माता लक्ष्मी की प्रतिमा विद्वान ब्राह्मण को अर्पित करें।

2018 में शरद पूर्णिमा

शरद पूर्णिमा या कहें कोजागर व्रत अश्विन माह की पूर्णिमा को रखा जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष यह तिथि 23-24 अक्तूबर को है।

शरद पूर्णिमा – 23-24 अक्तूबर 2018

चंद्रोदय – 17:14 बजे (23 अक्तूबर 2018)

चंद्रोदय – 17:49 बजे (24 अक्तूबर 2018)

पूर्णिमा तिथि आरंभ – 22:36 बजे (23 अक्तूबर 2018)

पूर्णिमा तिथि समाप्त – 22:14 बजे (24 अक्तूबर 2018)