खजुराहो मंदिर के बाहर काम क्रिया करती तस्वीरें कई बार श्रद्घालुओं और दर्शनार्थियों को आश्चर्य में डाल देते हैं कि, भोग और मुक्ति का ऐसा मेल क्यों हुआ है। इस विषय में कई कथाएं जिनसे यह भेद खुलता है कि मंदिर की दीवारों पर कामुक मूर्तियां क्यों बनाई गयी हैं।
हाल ही में खजुराहो में ब्रिक्स सम्मेलन का आयोजन हुआ जिसमें ब्राजील, चीन, रूस, साउथ अफ्रीका जैसे देश शामिल हुए। खजुराहो मंदिर की मूर्तियों के बारे में भारतीय जनमानस में हमेशा से एक अलग ही विचारधारा रही है। लेकिन सच्चाई उससे कहीं अलग है जो वामपंथी इतिहासकारों के कारण सामने नहीं आई है।
पाश्चात्य प्रभाव के कारण हमेशा से आधुनिक भारत में सेक्स को निकृष्ट दृष्टि से देखा जाता है। और आधुनिक लोग पश्चिम जीवन दर्शन को स्वच्छन्द मानते है।
खजुराहो का इतिहास –
मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो का इतिहास काफी पुराना है। खजुराहो का नाम खजुराहो इसलिए पड़ा क्योंकि यहां खजूर के पेड़ों का विशाल बगीचा था। खजिरवाहिला से नाम पड़ा खजुराहो। इब्नबतूता ने इस स्थान को कजारा कहा है, तो चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपनी भाषा में इसे ‘चि: चि: तौ’ लिखा है। अलबरूनी ने इसे ‘जेजाहुति’ बताया है, जबकि संस्कृत में यह ‘जेजाक भुक्ति’ बोला जाता रहा है। चंद बरदाई की कविताओं में इसे ‘खजूरपुर’ कहा गया तथा एक समय इसे ‘खजूरवाहक’ नाम से भी जाना गया। लोगों का मानना था कि इस समय नगर द्वार पर लगे दो खजूर वृक्षों के कारण यह नाम पड़ा होगा, जो कालांतर में खजुराहो कहलाने लगा।
खजुराहो के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कामकला के आसनों में दर्शाए गए स्त्री-पुरुषों के चेहरे पर एक अलौकिक और दैवी आनंद की आभा झलकती है। इसमें जरा भी अश्लीलता या भोंडेपन का आभास नहीं होता। ये मंदिर और इनका मूर्तिशिल्प भारतीय स्थापत्य और कला की अमूल्य धरोहर हैं। इन मंदिरों की इस भव्यता, सुंदरता और प्राचीनता को देखते हुए ही इन्हें विश्व धरोहर में शामिल किया गया है।
कामसूत्र की तरह ही खजुराहो के मंदिर भी विश्वप्रसिद्ध हैं, क्योंकि इनकी बाहरी दीवारों में लगे अनेक मनोरम और मोहक मूर्तिशिल्प कामक्रिया के विभिन्न आसनों को दर्शाते हैं। कामसूत्र में एक वैज्ञानिक की दृष्टि से कामभावना और कामकला का अध्ययन और विश्लेषण किया गया है तो उसकी मूल भावनाओं का खजुराहो में चित्रण किया गया है।
प्रचलित लोक कथाएं –
चन्द्रमा की कामुकता का परिणाम
खजुराहो के मंदिर के निर्माण के बारे में कहा जाता है कि हेमावती एक सुन्दर ब्राह्मण कन्या थी। वह वन में स्थित सरोवर में स्नान कर रही थी। उसे चन्द्रमा ने देख लिया और उस पर मुग्ध हो गया।
चन्द्रमा ने उसे वशीभूत कर उससे संबंध बना लिए। इससे हेमावती ने एक बालक को जन्म दिया। लेकिन बालक और हेमावती को समाज ने अपनाने से मना कर दिया। उसे बालक का पालन-पोषण वन में रहकर करना पड़ा।
बालक का नाम चन्द्रवर्मन रखा गया। बड़ा होकर चन्द्रवर्मन ने अपना राज्य कायम किया। हेमावती ने चन्द्रवर्मन को ऐसे मन्दिर बनाने के लिए प्रेरित किया जिससे मनुष्य के अन्दर दबी हुई कामनाओं का खोखलापन दिखाई दे। जब वह मन्दिर में प्रवेश करे तो इन बुराइयों का छोड चुके हो।
खत्म हो रहा था काम कला में उत्साह
एक मान्यता यह भी है कि गौतम बुद्घ के उपदेशों से प्ररित होकर आम जनमानस में कामकला के प्रति रुचि खत्म हो रही थी। इसीलिए उन्हें इस और आकर्षित करने के लिए इन मंदिरों का निर्माण किया गया होगा।
तंत्र-मंत्र में विश्वास
खजुराहों के संबंध में एक जनश्रुति यह भी है कि उस समय बच्चे गुरुकुल में पढ़ते थे। इसलिए उन्हें सांसारिक बातों का ज्ञान कराने के लिए इन मंदिरों का निर्माण कराया गया।
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