नवरात्री का त्यौंहार आने को हैं और सभी इसकी तैयारियों में लगे हुए हैं। देश के हर राज्य में नवरात्रि का त्यौंहार अलग-अलग तरीको से और धूमधाम से मनाया जाता हैं। सभी भक्तगण नवरात्री के इन नौ दिनों में मातारानी के विभिन्न स्वरूपों की पूजा करते हैं और उनको प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं। सभी नवरात्री की पूजा तो करते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि सबसे पहले नवरात्री की शुरुआत किसने की थी। तो आइये आज हम बताते हैं आपको इससे जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में।
पौराणिक कथा के अनुसार शारदीय नवरात्रि की शुरुआत भगवान राम ने कि थी। माना जाता है कि लंका में रावण से युद्ध से पहले भगवान राम ने शक्ति के प्रतीक मां दुर्गा की आराधना नौ दिनों तक की थी। तब ही जाकर भगवान श्री राम को लंका पर जीत हासिल हुई थी। लंका युद्ध में ब्रह्मा जी ने भगवान श्री राम से चंडी देवी का पूजन और व्रत कर प्रसन्न करने के लिए कहा और बताया कि चंडी पूजन और हवन हेतु दुर्लभ 108 नील कमल की व्यस्था करें। वहीं रावण ने भी अमृत्व के लोभ में विजय हेतु चंडी पाठ प्रारंभ कर दिया।
यह बात इंद्र देव ने पवन देव के माध्यम से श्री राम के पास पहुंचाई और परामर्श दिया की चंडी पाठ यथासंभव पूर्ण होने दिया जाए। इधर श्री राम के हवन सामग्री में और पूजा स्थल में से एक नील कमल रावण ने मायावी शक्ति से गायब कर दिया। यह देखकर भगवान श्री राम को अपना संकल्प टुटता हुआ नजर आया। भगवान श्री राम को इस बात का भी भय था कि कहीं देवी मां उनसे रुष्ट न हो जाएं। दुर्लभ नीलकमल की व्यस्था तत्काल असंभव थी। इसके बाद भगवान श्री राम को सहज ही यह स्मरण हुआ कि लोग मुझे कमल नयन नवकंच लोचन कहते हैं तो क्यों न संकल्प मैं अपना एक नेत्र देवी मां को अर्पित कर दूं।
राम ने जैसे ही अपने तरकश में से एक तीर निकाला और अपना नेत्र निकालने के लिए तैयार हुए तब देवी मां प्रकट हुई और भगवान श्री राम का एक हाथ पकड़कर कहा कि राम मैं तुमसे अति प्रसन्न हुं और मैं तुम्हें विजय श्री का आर्शीवाद देती हुं। वहीं दूसरी और रावण के चंडी पाठ में यज्ञ कर रहे ब्राह्मणों में ब्राह्मण बालक का रूप रखकर हनुमान जी सेवा में जुट गए। निस्वार्थ भाव से सेवा कर रहे हनुमान जी से ब्राह्मणों ने वर मांगने के लिए कहा। इस पर हनुमान जी ने विनम्रता पूर्वक कहा कि यदि आप सब मुझ पर प्रसन्न हैं तो जिस मंत्र से आप यज्ञ कर रहे हैं। उस मंत्र का एक अक्षर मेरे कहने से बदल दीजिए।
ब्राह्मण इस रहस्य को समझ नहीं सके और तथास्तु कह दिया। हनुमान जी ने कहा जया देवी भूर्ति हरणी में ‘क’ शब्द का प्रयोग करें। भूर्ति हरणी यानी की प्राणों की पीड़ा हरने वाली और भूर्ति करणी का अर्थ हो जाता है प्राणों पर पीड़ा करने वाली यह बदला हुआ मंत्र जैसे ही जपा गया। उसी समय देवी रुष्ट हो गई और रावण का सर्वनाश कर दिया। हनुमान जी ने श्लोक में ह की जगह क करवाकर रावण के यज्ञ की दिशा ही बदल दी और यही कारण है कि दशहरे के पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। इस तरह से भगवान श्री राम ने नवरात्रि पर नौ दिनों तक मां दुर्गा की पूजा की थी।
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