29 सितंबर दिन रविवार से शारदीय नवरात्रि शुरु हो रही है। नवरात्रि (Navratri) के दौरान मां दुर्गा के सभी नौ रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्र के पहले दिन कलश स्थापना के साथ ही दुर्गासप्तशती एवं गीता का भी पाठ किया जाता है। इस दौरान कलश स्थापित करके देवी मां की कृपा बहुत आसानी से पाई जा सकती है। 29 सितंबर से शुरू हो रही नवरात्रि इस बार पूरे 9 दिन की होगी। 7 अक्टूबर को महानवमी पूजन के बाद 8 अक्टूबर को विजयादशमी का त्योहार मनाया जाएगा। नवरात्रि में मां दुर्गा की नौ दिन उपासना की जाती है। मान्यता है कि नवरात्रि के दिनों में मां के दर्शन और पूजन से विशेष फल मिलता है। इस समय देवी मां के दर्शन करने से जीवन में सफलता मिलती है। सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। नवरात्रि में मां की पूजा के दौरान लगाए गए भोग का भी विशेष महत्त्व है। मान्यताओं के अनुसार मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए अगर उनके पसंदीदा भोजन का भोग लगाया जाए तो मां की कृपा बनी रहती है। तो आइए जानते हैं मां के अलग-अलग रूप के लिए प्रसाद..
पहले दिन माता शैलपुत्री का पूजन किया जाता है। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को ‘मूलाधार’ चक्र में स्थित करते हैं। यहीं से उनकी योग साधना का प्रारंभ होता है। मां शैलपुत्री को सफेद रंग बहुत पसंद है। इस दिन माता को गाय का घी, सफेद मिठाई या शैल अन्न अर्पित किए जाते हैं।
नवरात्र पर्व के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को माँ के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल रहता है। इस दिन माता को शक्कर का अर्पित करें और भोग लगाए इस प्रसाद को घर के सभी सदस्य को दें। मान्यता है कि इस प्रसाद के खाने से उम्र में वृद्धि होती है।
मां दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है। इस दिन साधक का मन ‘मणिपूर’ चक्र में प्रविष्ट होता है। मां चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं, दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है तथा विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियाँ सुनाई देती हैं। ये क्षण साधक के लिए अत्यंत सावधान रहने के होते हैं। इस दिन माता को दूध या दूध से बनी मिठाई, खीर का भोग लगाते हैं। मां चन्द्रघण्टा की उपासना करने से इंसान को समस्त सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिल जाती है और आनंद की प्राप्ति होती है।
नवरात्र-पूजन के चौथे दिन कुष्माण्डा देवी के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन ‘अनाहत’ चक्र में अवस्थित होता है। अतः इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और अचंचल मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा-उपासना के कार्य में लगना चाहिए। माता के इस रूप के पूजन से सुख, समृद्धि और उन्नति की प्राप्ति होती है। मां कुष्मांडा को मालपुए का भोग लगाएं और इसे ब्राह्मण को दान करें। मान्यता है कि ऐसा करने से बुद्धि के विकास के साथ निर्णय लेने की शक्ति बढ़ जाती है।
वेदों में लिखा गया है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। अतः ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है। वहाँ निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दैदीप्यमान हैं।
नवरात्रि का पाँचवाँ दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं। स्कन्दमाता को केले का नैवेद्य अर्पित करना चाहिए। मान्यता है कि स्कन्दमाता को केला अर्पित करने से शरीर स्वस्थ रहता है।
कात्यायनी नवदुर्गा या हिंदू देवी पार्वती (शक्ति) के नौ रूपों में छठवीं रूप हैं। मां कात्यायनी को शहद और लौकी का भोग लगाना फलदायक होता है।
माँ दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। दुर्गा पूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन ‘सहस्रार’ चक्र में स्थित रहता है। इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। देवी कालात्रि को व्यापक रूप से माता देवी – काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, मृत्यु, रुद्रानी, चामुंडा, चंडी और दुर्गा के कई विनाशकारी रूपों में से एक माना जाता है। रौद्री और धुमोरना देवी कालात्री के अन्य कम प्रसिद्ध नामों में हैं। कालरात्रि मां के पूजन से दुष्टों का विनाश और ग्रह बाधाओं से मुक्ति मिलती है। मां कालरात्रि को गुड़ से बने नैवेद्य का भोग लगाना चाहिए।
माँ दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। इनकी शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों के सभी कल्मष धुल जाते हैं, पूर्वसंचित पाप भी विनष्ट हो जाते हैं। महागौरी को नारियल का भोग लगाया जाता है।
माँ दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्र-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता है। ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य उसमें आ जाती है। इस दिन मां को तिल अर्पित करने से विशेष फल मिलता है।
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