उलूपी नाग राजा कौरव्य की बेटी थी, जो गंगा नदी के जलसर्पों के राजा थे। इस तरह उलूपी एक नाग कन्या थी तथा इनका विवाह तीसरे पांडव अर्जुन के साथ हुआ था। उलूपी एक विशेषज्ञ योद्धा थी व इसने इस युद्धकला का शिक्षण अर्जुन की दूसरी पत्नी चित्रांगदा से पैदा हुए पुत्र वभ्रुवाहन को भी दिया था। जब वभ्रुवाहन ने अर्जुन को मार डाला तो उलूपी ने अर्जुन को पुनजीवित किया।
एक साल के वनवास के दौरान हुआ अर्जुन का उलूपी से मिलन
पांचाली, पांचों पांडवों की पत्नी थी तथा हर साल केवल एक पांडव उसके महल में प्रवेश कर सकता था। अगर इस दौरान अन्य चारों पांडव भाइयों में से कोई एक भी उसके कक्ष में प्रवेश करेगा तो उसे एक साल का वनवास भोगना होगा। महाभारत में उल्लेखित हैं कि एक बार अर्जुन का गांडीव पांचाली के कक्ष में छूट गया था तथा एक गरीब व्यक्ति की मदद करने हेतु अर्जुन को मजबूरन पांचाली के कक्ष में प्रवेश करना पडा। इस वजह से अर्जुन को एक साल का वनवास भोगना पड़ा था।
अर्जुन व उलूपी का विवाह
इस एक साल के वनवास के दौरान अर्जुन की मुलाकात उलूपी से हुई। अर्जुन को देखकर उलूपी विमुग्ध हो गई व अर्जुन को पाताल लोक ले गई। यहां उलूपी ने अर्जुन से विवाह करने का अनुरोध किया। इस विवाह से इन्हें इरावान नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। अपनी इच्छा पूर्ण होने पर उलूपी ने अर्जुन को समस्त जलचरों का स्वामी होने का व अजेय होने का वरदान दिया।
अर्जुन को मिली वभ्रुवाहन के हाथों मृत्यु व उलूपी के हाथों जीवनदान
जब पांडवों ने अश्वमेध यज्ञ किया तो वभ्रुवाहन ने अश्वमेध घोडे को अपने क्षेत्र में प्रवेश करने पर रोका। इसी कारण वभ्रुवाहन व अर्जुन के बीच युद्ध हुआ तथा वभ्रुवाहन इस बात से अनजान था कि अर्जुन ही उनके पिता हैं। इस युद्ध में वभ्रुवाहन ने उलूपी द्वारा सिखाई गई युद्ध कला का इस्तेमाल किया। युद्ध के दौरान, वभ्रुवाहन का तीर अर्जुन की छाती पर जा लगा और वह वहीं ढेर हो गया।
जैसे ही उलूपी को इस घटना के बारे में पता चला तो वह फौरन घटना स्थल पर पहुंची व नागों द्वारा प्राप्त हुई विद्या का उपयोग करके अर्जुन की जान बचाई। बाद में उलूपी ने पिता व पुत्र को मिलाया। एक दंत कथा के अनुसार, देवी गंगा ने अर्जुन को शाप दिया था कि वह एक दिन अपने पुत्र के हाथों मारा जाएगा क्योंकि उसने कुरुक्षेत्र के युद्ध में शिखंडी को ढाल बनाकर छल से भीष्म का वध किया था।
जब उलूपी को इस शाप के बारे में पता चला तो उसने देवी गंगा से क्षमा मांगी। देवी गंगा ने उलूपी से कहा कि वभ्रुवाहन के हाथों अर्जुन की मृत्यु होगी लेकिन वह मृत्संजीवनी की मदद से अर्जुन को फिर से जीवित कर पाएगी। जब पांडवों ने अपनी अंतिम यात्रा की शुरुवात की, तब उलूपी गंगा नदी के नीचे बसे जलचर में वापस लौट गई।
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