नटराज एक बहुत ही प्रसिद्ध नाचते हुए देवता की मूर्ती है। जिन्हें नृत्य का शौक होता है वे अपने सामने नटराज जी की मूर्ती रखते हैं और उन्हें प्रणाम कर के ही अपना नृत्य शुरु करते हैं। यह नटराज भगवान दरअसल शिव जी का स्वरूप हैं। नटराज शिवजी का एक नाम है उस रूप में जिस में वह सबसे उत्तम नर्तक हैं। नटराज दो शब्दों से मिल कर बना है- नट अथार्त कला और राज का अर्थ है राजा। शिव का तांडव नृत्य प्रसिद्ध है।
भगवान शिव को आमतौर पर विनश के साथ जोड़ा जाता है और हमेशा उन्हें गुस्से में ही दिखाया गया है। लेकिन बहुत ही कम लोग यह जानते हैं कि शिव जी को संगीत और नृत्य से कितना ज्यादा प्यार था। नटराज अवतार एक संदेश था कि अज्ञानता को केवल ज्ञान, संगीत और नृत्य ही दूर कर सकता है।
शिव के तांडव के दो स्वरूप हैं। पहला उनके क्रोध को दिखाता है और दूसरा आनंदरप्रदान करने वाला तांडव। प्राचीन आचार्यों के मतानुसार शिव के आनन्द तांडव से ही सृष्टी अस्तित्व में आती है तथा उनके रौद्र तांडव में सृष्टी का विलय हो जाता है। शिव कानटराज स्वरूप भी उनके अन्य स्वरूपों की ही भातिं मनमोहक तथा उसकी अनेक व्याख्यायँ हैं।
नटराज शिव की प्रसिद्ध प्राचीन मुर्ति के चार भुजाएं हैं, उनके चारो ओरअग्नि के घेरें हैं। उन्होंने अपने एक पांव से एक बौने को दबा रखा है तथा दूसरे पांव से नृत्य मुद्रा में उपर की ओर उठा है। उन्होने अपने पहले दाहिने हाथ में डमरू पकड़ा है। डमरू की आवाज सृजन का प्रतीक है। ऊपर की ओर उठे हुए उनके दूसरे हाथ में आग है जो कि विनाश का प्रतीक है। उनका दुसरा दाहिना हाँथ अभय (या आशिस) मुद्रा में उठा हुआ है जो कि हमें बुराईयों से रक्षा करता है।
नटराज का जो पांव उठा हुआ है वह मोक्ष दर्शाता है। इसका अर्थ यह है कि शिव मोक्ष के मार्ग का सुझाव करते हैं। कहा जाता है कि शिव के चरणों में मोक्ष है। जो बौना शिव के पैरों तले दबा हुआ है वह अज्ञान का प्रतीक है। शिव जी अज्ञान का विनाश करते हैं।
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