रावण और भगवान शिव – भगवान भोलेनाथ के अनेक भक्त हैं जिनमें से रावण भी एक था. हालांकि रावण का अंत बहुत बुरा हुआ, किन्तु शिवभक्तों में उसका नाम सर्वोपरी लिया जाता है. हमारे देश में एक मंदिर ऐसा भी है जहां पर भगवान शिव से पहले रावण की पूजा जाती है.
आइए आपको बताते हैं रावण और भगवान शिव की कहानी – उस जगह के बारे में जहां रावण ने भगवान शिव की तपस्या करके पहले अपनी पूजा का वरदान पाया था-
रावण और भगवान शिव की कहानी –
1. रावण भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था. नूरपूर की वादियों में रावण ने सालों तक भगवान शिव की आराधना की थी. नूरपूर में एक बड़ी ही रहस्यमय गुफा है. गुफा में सैकड़ों शिवलिंग हैं. वहां रावण कई वर्षों तक भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भूखा—प्यासा रहा था. आज भी यह गुफा अपना वजूद बचाए हुए है.
2. भगवान शिव ने रावण की कड़ी तपस्या से प्रसन्न होकर जब उससे वर मांगने के लिए कहा तो रावण ने कहा कि इस गुफा में स्थापित सैकड़ों शिवलिंगों में से, मैं सबसे बड़े शिवलिंग को अपने साथ ले जाना चाहता हूं. आप उस शिवलिंग में साक्षात प्रकट हो जाइए. भगवान ने उसकी इच्छा पूरी करते हुए यही किया.
3. इसके साथ ही भगवान शिव ने उसकी परीक्षा लेते हुए कहा ठीक है तुम उस शिवलिंग में मुझे लेकर चलो. लेकिन मेरी भी एक शर्त है कि कुछ भी हो जाए तुम मुझे रास्ते में नीचे नहीं उतारोगे.
4. रावण ठहरा एक अन्नय भक्त उसने भारी शिवलिंग को अपने कंधे पर उठाया और चलने लगा, लेकिन कुछ दूर चलने के बाद रावण शिव की बात भूलने लगा. आगे बढ़ा तो उसे बहुत तेज लघु शंका का अहसास हुआ. उसने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया.
5. इसके कुछ समय पश्चात जब वापस आकर रावण शिवलिंग को उठाने लगा तो शिवलिंग नहीं उठा. रावण को अपनी गलती का अहसास हुआ. जिस जगह पर रावण ने शिवलिंग को उतारा था उस जगह को बैजनाथ कहते हैं.
6. आज भी बैजनाथ में वह पुराना मंदिर है जहां रावण ने शिवलिंग को नीचे उतारा था. शास्त्रों के मुताबिक वहां पर रावण काफी दिनों तक रुक गया था. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अब आगे क्या करें, क्योंकि वह शिवलिंग को न तो अपने साथ ले जा सकता और न ही वहां छोड़ सकता था.
7. रावण वहां रुककर ही शिवलिंग की तपस्या करने लगा. वह भगवान को नित्य कमल के फूल चढ़ाया करता था. एक दिन कमल का फूल न मिलने पर उसने भगवान शिव को अपना सिर काटकर ही चढ़ा दिया था.
8. भगवान शिव से उसकी ऐसी भक्ति देखकर रहा न गया, तब उन्होंने उसे वरदान दिया कि इस जगह पर मुझसे पहले तेरी पूजा होगी और जो तेरा तिरस्कार करेगा वह मेरे प्रकोप से बच नहीं पाएगा
9. इलाके के लोग आज भी दशहरा के दिन रावण का पुतला नहीं जलाते हैं. कुछ लोगों ने ऐसी कोशिश की लेकिन पूरा इलाका महामारी की चपेट में आ गया. लोगों का कहना है कि रावण को शिव का वरदान था कि उसका कोई तिरस्कार नहीं कर सकता. सावन के महीने में यहां भगवान शिव और रावण दोनों की पूजा की जाती है.
10. भगवान शिव के कारण आज भी तीनों लोकों में रावण की जय—जयकार होती है. आज भी उस गुफा में कई शिवलिंग पाए जाते हैं, लेकिन कोई भी उनके अंदर जाने की हिम्मत नहीं दिखा पाता है.
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