कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के बीच देश में 3 मई तक का लॉकडाउन है लेकिन अगर यह लॉकडाउन आगे बढ़ता है तो ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा पर भी ग्रहण लग सकता है। लगभग 280 साल में ये पहला मौका होगा जब कोरोना वायरस के चलते रथयात्रा रोकी जा सकती है। हालांकि अभी इन विकल्पों पर भी विचार किया जा रहा है कि अगर स्थितियां नियंत्रण में रही तो एक विकल्प ये भी है कि पूरे पुरी जिले में सीमाएं सील करके चुनिंदा लोगों और स्थानीय भक्तों के साथ रथयात्रा निकाली जाए। इसका लाइव टेलिकास्ट चैनलों पर किया जाए जिससे बाहर के श्रद्धालु आसानी से रथयात्रा देख सकें। इस पर सहमति बनने की सबसे ज्यादा संभावना है क्योंकि मठ की तरफ से भी इस पर गंभीरता से विचार करने को कहा गया है।
पुरी के जगन्नाथ मंदिर के सेवायतों के संगठन दइतापति निजोग ने लॉकडाउन के बीच रथयात्रा कराने का निवेदन किया है। पत्र ने जरिए दइतापति निजोग ने कहा है कि देश में अनेकों बार महामारी हुई है, लेकिन कभी भी भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा बंद नहीं हुई। ऐसे में पुराने इतिहास को ध्यान में रखकर इस साल भी कोरोना वायरस के चलते जारी प्रतिबंध के बीच रथयात्रा की इजाजत मिलनी चाहिए। दइतापति निजोग ने सचिव दुर्गादास महापात्र ने बताया कि पत्र में यह भी कहा गया है कि रथयात्रा में शामिल होने वाले लोगों का पहले मेडिकल चेकअप कराया जाएगा।
वहीं, इसके साथ यह भी कहा जा रहा है कि मंदिर के अंदर ही रथयात्रा की परंपराओं को पूरा किया जाए। जिसमें मठ और मंदिर से जुड़े लोग ही शामिल हो सकें। अभी भी अक्षय तृतीया, चंदन यात्रा और कई उत्सव मंदिर के अंदर ही किए गए हैं। हालांकि, इस पर रजामंदी होने की उम्मीद सबसे कम है।
आपको बता दे, 23 जून को रथ यात्रा निकलनी है। अक्षय तृतीया यानी 26 अप्रैल से इसकी तैयारी भी शुरू हो गई है। मंदिर के भीतर ही अक्षय तृतीया और चंदन यात्रा की परंपराओं के बीच रथ निर्माण की तैयारी शुरू हो गई है। मंदिर के अधिकारियों और पुरोहितों ने गोवर्धन मठ के शंकराचार्य जगतगुरु श्री निश्चलानंद सरस्वती के साथ भी रथयात्रा को लेकर बैठक की है, लेकिन इसमें अभी कोई निर्णय नहीं हो पाया है। नेशनल लॉकडाउन के चलते पिछले एक महीने से भी ज्यादा समय से पुरी मंदिर बंद है। सारी परंपराएं और विधियां चुनिंदा पूजापंडों के जरिए कराई जा रही है।
आपको बता दे, भगवान जगन्नाथ की यह रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से आरंभ होती है। यह यात्रा मुख्य मंदिर से शुरू होकर 2 किलोमीटर दूर स्थित गुंडिचा मंदिर पर समाप्त होती है। जहां भगवान जगन्नाथ सात दिन तक विश्राम करते हैं और आषाढ़ शुक्ल दशमी के दिन फिर से वापसी यात्रा होती है, जो मुख्य मंदिर पहुंचती है। यह बहुड़ा यात्रा कहलाती है।
More Stories
Chandra Grahan 2023: शरद पूर्णिमा का त्यौहार पड़ेगा साल के आखिरी चंद्र ग्रहण के साये में; रखें इन बातों का ख्याल !
Palmistry: हथेली पर शुक्र पर्वत आपके भाग्य को दर्शाता है, इससे अपने भविष्य का आकलन करें।
Solar Eclipse 2023: साल का आखिरी सूर्य ग्रहण कल, जानिए किस राशि पर बरसेगा पैसा और किसे रहना होगा सावधान!