नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट कालेजियम ने 12 साल की बच्ची से दुर्व्यवहार के दोषी से पॉक्सो एक्ट हटाने वाली बांबे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच की जज जस्टिस पुष्पा गनेड़ीवाला को स्थायी जज बनाने की सिफारिश वापस ले ली है। जस्टिस पुष्पा गनेड़ीवाला फरवरी 2019 में एडिशनल जज नियुक्त हुई थीं। पिछले 20 जनवरी को कॉलेजियम ने उन्हें स्थायी जज बनाने की सिफारिश की थी।
जस्टिस पुष्पा गनेड़ीवाला की दो साल पहले फरवरी 2019 में जिला न्यायालय से हाईकोर्ट में अस्थाई जज के तौर पर नियुक्ति हुई है। लेकिन बाल यौन उत्पीड़न संरक्षण कानून यानी पॉक्सो एक्ट और अन्य कानूनी मामलों में उनके एक नहीं कई फैसले विवादित रहे हैं। हाल ही में एक हफ़्ते के भीतर यौन उत्पीड़न के मामलों में उनके दिए दो फैसलों पर जबरदस्त विवाद हो रहा है।
संविधान के अनुच्छेद 234 (1) के प्रावधानों के मुताबिक हाईकोर्ट में अतिरिक्त जज के तौर पर बार में प्रैक्टिस करने वाले अनुभवी वकील या फिर निचली न्यायपालिका के जजों की अधिकतम दो वर्ष तक नियुक्ति के लिए हाईकोर्ट कॉलेजियम सुप्रीम कोर्ट को सिफारिश भेजता है।
अतिरिक्त जज का प्रोबेशन पीरियड खत्म होने से पहले अगर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उनको परमानेंट जज बनाए जाने को हरी झंडी दे दी तो ठीक वरना नियुक्ति निष्प्रभावी हो जाती है। परमानेंट जज बनाए जाने के बाद जज को सिर्फ महाभियोग की प्रक्रिया के ज़रिए ही हटाया जा सकता है।
दरअसल बांबे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच की जज पुष्पा गनेड़ीवाला ने पिछले 19 जनवरी को अपने फैसले में लिखा कि सिर्फ वक्षस्थल को जबरन छूना मात्र यौन उत्पीड़न नहीं माना जाएगा। इसके लिए यौन मंशा के साथ स्किन टू स्किन कांटेक्ट होना जरुरी है। हाईकोर्ट ने इसे गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला मामला माना। सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश पर पिछले 27 जनवरी को रोक लगा दिया था।
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