October 18, 2024

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Biography: हिन्दी को हर दिन, एक नया रूप, एक नई पहचान देने वाले उपन्‍यास सम्राट् प्रेमचन्‍द्र जी का जीवन परिचय !

Biography: हिन्दी को हर दिन ,एक नया रूप, एक नई पहचान देने वाले उपन्‍यास सम्राट् प्रेमचन्‍द्र जी का जीवन परिचय !

इस पोस्ट मे हम उपन्‍यास सम्राट् प्रेमचन्‍द्र जी के जन्म से मृत्यु तक की दास्तां और उनसे जुड़े कुछ रोचक तथ्य के बारे मे जानेंगे, तो आइये जानते हैं प्रेमचन्‍द्र जी का जीवन परिचय कुछ शब्दो मे –

 

नाम मुंशी प्रेमचंद
पूरा नाम धनपत राय
जन्म 31 जुलाई 1880
जन्म भूमि लमही, वाराणसी
मृत्यु 8 अक्टूबर 1936
मृत्यु स्थान वाराणसी
अभिभावक (पिता) अजायब राय
माता का नाम आनंदी देवी
व्यवसाय अध्यापक, लेखक, पत्रकार
मुख्य रचनाएँ गोदान, गबन
भाषा हिन्दी व उर्दू

प्रेमचन्‍द्र का जीवन परिचय

मुंसी प्रेमचंद जी का जन्म लमही नामक एक छोटे से गाँव जो की वाराणसी जिले मे स्तिथ है, मे  31 जुलाई 1880 को हुआ था. प्रेमचंद जी एक छोटे और सामान्य परिवार से थे . उनके दादाजी गुर सहाय राय जोकि, पटवारी थे और पिता अजायब राय जोकि, पोस्ट मास्टर थे . बचपन से ही उनका जीवन बहुत ही, संघर्षो से गुजरा था . जब प्रेमचंद जी महज आठ वर्ष की उम्र मे थे तब, एक गंभीर बीमारी मे, उनकी माता जी का देहांत हो गया .

बहुत कम उम्र मे, माताजी के देहांत हो जाने से, प्रेमचंद जी को, बचपन से ही माता–पिता का प्यार नही मिल पाया . सरकारी नौकरी के चलते, पिताजी का तबादला गौरखपुर हुआ और, कुछ समय बाद पिताजी ने दूसरा विवाह कर लिया . सौतेली माता ने कभी प्रेमचंद जी को, पूर्ण रूप से नही अपनाया . उनका बचपन से ही हिन्दी की तरफ, एक अलग ही लगाव था . जिसके लिये उन्होंने स्वयं प्रयास करना प्रारंभ किया, और छोटे-छोटे उपन्यास से इसकी शुरूवात की . अपनी रूचि के अनुसार, छोटे-छोटे उपन्यास पढ़ा करते थे . पढ़ने की इसी रूचि के साथ उन्होंने, एक पुस्तकों के थोक व्यापारी के यहा पर, नौकरी करना प्रारंभ कर दिया .

जिससे वह अपना पूरा दिन, पुस्तक पढ़ने के अपने इस शौक को भी पूरा करते रहे . प्रेमचंद जी बहुत ही सरल और सहज स्वभाव के, दयालु प्रवत्ति के थे . कभी किसी से बिना बात बहस नही करते थे, दुसरो की मदद के लिये सदा तत्पर रहते थे . ईश्वर के प्रति अपार श्रध्दा रखते थे . घर की तंगी को दूर करने के लिये, सबसे प्रारंभ मे एक वकील के यहा, पांच रूपये मासिक वेतन पर नौकरी की . धीरे-धीरे उन्होंने खुद को हर विषय मे पारंगत किया, जिसका फायदा उन्हें आगे जाकर मिला ,एक अच्छी नौकरी के रूप मे मिला . और एक मिशनरी विद्यालय के प्रधानाचार्य के रूप मे, नियुक्त किये गये . हर तरह का संघर्ष उन्होंने, हँसते – हँसते किया और अंत मे, 8 अक्टूबर 1936 को अपनी अंतिम सास ली .

साहित्यिक परिचय

प्रेमचन्‍द्र जी में साहित्‍य-सृजन की जनमजात प्रतिभा विद्यमान थी। आरम्‍भ में ‘नवाब राय’ के नाम से उर्दू भाषा में कहानियॉं और उपन्‍यास लिखते थे। इनकी ‘सोजे वतन’ नामक क्रान्तिकारी रचना ने स्‍वाधीनता-संग्राम में ऐसी हलचल मचायी कि अंग्रेज सरकार ने इनकी यह कृति जब्‍त कर ली।

बाद में ‘प्रेमचन्‍द्र’ नाम रखकर हिन्‍दी साहित्‍य की साधना की और लगभग एक दर्जन उपन्‍यास और तीन सौ कहानियॉं लिखीं। इसके अतिरिक्‍त इन्‍होंने ‘माधुरी’ तथा ‘मर्यादा’ पत्रिकाओं का सम्‍पादन किया तथा ‘हंस’ व ‘जागरण’ नामक पत्र का प्रकाशन किया।

जनता की बात जनता की भाषा में कहकर तथा अपने कथा साहित्‍य के माध्‍यम से तत्‍कालीन निम्‍न एवं मध्‍यम वर्ग का सच्‍चा चित्र प्रसतुत करके प्रेमचन्‍द्र जी भारतीयों को हदय में समा गयें। सच्‍चे अर्थो में ‘कलम के सिपाही’ और जनता के दु:ख-दर्द के गायक इस महान् कथाकार को भारतीय साहित्‍य-जगत् में ‘उपन्‍यास सम्राट’ की उपाधि से विभूषित किया गया।

प्रेमचन्‍द्र जी की भाषा-शैली

प्रेमचन्‍द्र जी की भाषा के दोरूप है- एक रूप तो वह है, जिसमें संस्‍कृत के तत्‍सम शब्‍दों की प्रधानता है और दूसरा रूप वह है, जिसमें उर्दू संस्‍कृत, हिनदी के व्‍यावहारिक शब्‍दों काप्रयोग किया गया है। यह भाषा अधिक सजीव, व्‍यावहारकि ओर प्रवाहमयी है।

इनकी भाषा सहज, सरल, व्‍यावहारिक, प्रवाह पूर्ण, मुहावरेदार एवं प्रभावशाली है। प्रेमचन्‍द्र विषय एवं भावों अनुयप शैली को परिवर्तित करने में दक्ष थे। इन्‍होंने अपने साहित्‍य में प्रमुख रूप में पॉंच शैलियों का प्रयोग किया है।

  • वर्णनात्‍मक
  • विवेचनात्‍मक
  • मनोवैज्ञानिक
  • हास्‍य-व्‍यंग्‍यप्रधान शैली
  • भावात्‍मक शैली

मुंशी प्रेमचंद जी की कुछ प्रमुख रचनाएँ

मुंशी प्रेमचंद जी की सभी रचनाये प्रमुख थी . किसी को भी अलग से, संबोधित नही किया जा सकता . और उन्होंने हर तरह की अनेको रचनाये लिखी थी जो, हम बचपन से हिन्दी मे पढ़ते आ रहे है ठीक ऐसे ही, उनके कई उपन्यास नाटक कविताएँ कहानियाँ और लेख हिन्दी साहित्य मे दिये गये है . जैसे- गोदान,गबन,कफ़न आदि अनगिनत रचनाये लिखी है।

मुंशी प्रेमचंद जी के पुरस्कार और सम्मान

1. प्रेमचंद के याद में भारतीय डाक तार विभाग द्वारा 30 पैसे मूल्य का डाक टिकट जारी किया गया।

2. गोरखपुर के जिस स्कूल में वे पढ़ाते थे वहीं पर प्रेमचंद साहित्य संस्थान की स्थापना की गई।

3. प्रेमचंद की पत्नी शिवरानी देवी ने प्रेमचंद घर के नाम से उनकी जीवनी लिखी।

मुंशी प्रेमचंद जी के उपन्यास

1. सेवासदन

2. प्रेमाश्रम

3. रंगभूमि

4. निर्मला

5.कायाकल्प

6. गबन

7. कर्मभूमि

8. गोदान

9. मंगलसूत्र।

मुंशी प्रेमचंद जी की कहानियां

1. दो बैलों की कथा

2. आत्माराम

3. आखिरी मंजिल

4. आखरी तोहफा

5. इज्जत का खून

6. ईदगाह

7.इस्तीफा

8. क्रिकेट मैच

9. कर्मों का फल

10. दूसरी शादी

11. दिल की रानी

12. नाग पूजा

13. निर्वाचन

14. पंच परमेश्वर आदि।