गुरु चाणक्य भारत के महान दार्शनिक, कुटनीतिज्ञ और विद्वान रहे हैं. उन्होंने मानव जीवन, सफलता, धोखे को लेकर कई सारी बातें कही हैं. उनकी बातों को नीति शास्त्र में संकलित किया गया है. चाणक्य नीति में बताई गई बातों का जिसने भी अनुसरण किया, उसने जीवन में सफलता हासिल की है. आचार्य चाणक्य कहते हैं कि दान करने से व्यक्ति के मान- सम्मान में वृद्धि होती है. उन्होंने विभिन्न प्रकार के दानों के बारे में विस्तार से बताया है. इन्हीं दानों में से चाणक्य ने कुछ दानों को श्रेष्ठ बताया है.
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श्लोक
आचार्य चाणक्य ने नीति शास्त्र में दान को लेकर कई सारी बातें कही हैं. उन्होंने विभिन्न प्रकार के दानों का भी उल्लेख किया है. चाणक्य के अनुसार, हर इंसान को अपने सामर्थ्य के अनुसार दान करना चाहिए. उन्होंने एक दान को श्लोक के माध्यम से सबसे बड़ा दान बताया है.
नान्नोदकसमं दानं न तिथिर्द्वादशी समा ।
न गायत्र्याः परो मन्त्रो न मातुर्दैवतं परम् ।।
पुण्य की प्राप्ति
इस श्लोक का अर्थ है कि अन्न और जल के दान के समान कोई कार्य नहीं, द्वादशी के समान कोई तिथि नहीं, गायत्री के समान कोई मंत्र नहीं और मां से बढ़कर कोई देवता नहीं. उनके अनुसार, हर इंसान को दान करना चाहिए. इससे सुख-समृद्धि और पुण्य की प्राप्ति होती है.
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सर्वोत्तम दान
चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में विघा दान, भू दान, कन्या दान, वस्त्र दान, अन्न दान और गो दान को सर्वोत्तम दान की श्रेणी में रखा है. उनका कहना है कि विद्या का दान सबसे श्रेष्ठ है, क्योंकि यह कभी खत्म नहीं होता है.
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