वर्तमान में कोरोनावायरस (COVID-19) का प्रकोप जारी हैं और लोगों में इसका खौफ फैला हुआ है। चीन में 3000 से भी अधिक मौत हो चुकी हैं और अभी तक इसकी दवाई भी तैयार नहीं हो पाई हैं। ऐसे में लोग सहमे हुए हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इतिहास में पहले भी ऐसी कई बीमारियां आ चुकी हैं। आज इस कड़ी में हम आपको एक ऐसी बीमारी के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने करोड़ों लोगों की जान ले ली। हम बात कर रहे हैं ‘स्पेनिश फ्लू’ नाम से जानी जाने वाली महामारी की जो सौ साल पहले प्रथम विश्वयुद्ध के बाद पश्चिमी मोर्चे पर स्थित छोटे और भीड़ वाले सैन्य प्रशिक्षण शिविरों में शुरु हुई। इन शिविरों और खासतौर पर फ्रांस की सीमा के करीब की खंदकों में गंदगी की वजह से ये बीमारी पनपी और तेजी से फैली।
युद्ध तो नवंबर 1918 में समाप्त हो गया था, लेकिन घर वापिस लौटने वाले संक्रमित सैनिकों के साथ यह वायरस भी अन्य क्षेत्रों में फैलता गया। इस बीमारी की वजह से बहुत सारे लोग मारे गए। माना जाता है कि स्पेनिश फ्लू से पांच से दस करोड़ के बीच लोग मारे गए थे।
जब स्पेनिश फ्लू फैला था तब दुनिया में हवाई यात्रा की शुरुआत बस हुई थी। यह बड़ी वजह थी कि उस समय दुनिया के दूसरे देश बीमारी के प्रकोप से अछूते रहे। उस समय बीमारी रेल और नौकाओं में यात्रा करने वाले यात्रियों के जरिए ही फैली इसलिए उसका प्रसार भी धीमी गति से हुआ। कई जगहों पर स्पेनिश फ्लू को पहुंचने में कई महीने और साल लग गए, जबकि कुछ जगहों पर यह बीमारी लगभग पहुंची ही नहीं। उदाहरण के तौर पर, अलास्का। इसकी वजह थी वहां के लोगों द्वारा बीमारी को दूर रखने के लिए अपनाए गए कुछ बुनियादी तरीके।
अलास्का के ब्रिस्टल बे इलाके में यह बीमारी नहीं फैली। वहां के लोगों ने स्कूल बंद कर दिए, सार्वजानिक जगहों पर भीड़ के इकट्ठा होने पर रोक लगा दी और मुख्य सड़क से गांव तक पहुंचने बाले रास्ते बंद कर दिए। अब कोरोना वायरस को रोकने के लिए उसी तरह के मगर आधुनिक तरीके चीन और इटली में अपनाए जा रहे हैं, जहां लोगों की आवाजाही और उनके भीड़ वाली जगहों जाने को नियंत्रित किया जा रहा है।
डॉक्टर स्पेनिश फ्लू को ‘इतिहास का सबसे बड़ा जनसंहार’ बताते हैं। बात केवल यह नहीं है कि इतनी बड़ी संख्या में लोग इससे मारे गए बल्कि यह कि इसका शिकार हुए कई लोग जवान और पूरी तरह स्वस्थ थे। आमतौर पर स्वस्थ लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता फ्लू से निपटने में सफल रहती है, लेकिन फ्लू का यह स्वरूप इतनी तेजी से हमला करता था कि शरीर की प्रतिरोधक शक्ति पस्त हो जाती। इससे सायटोकिन स्टॉर्म नामक प्रतिक्रिया होती है और फेफड़ों में पानी भर जाता है जिससे यह बीमारी अन्य लोगों में भी फैलती है। उस समय बूढ़े लोग इसका शिकार कम हुए क्योंकि संभवत: वो 1830 में फैले इस फ्लू के एक दूसरे स्वरूप से जूझ चुके थे। फ्लू की वजह से विश्व के विकसित देशों में सार्वजानिक स्वास्थ्य प्रणाली में काफी विकास हुआ, क्योंकि सरकारों और वैज्ञानिकों को अहसास हुआ की महामारियां बहुत तेजी से फैलेंगी।
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