नवरात्र का पावन पर्व शुरू होने को हैं और सभी भक्ति-भाव में लग चुके हैं। सभी चाहते है कि मातारानी को अपनी भक्ति से प्रसन्न किया जाए और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाए। ऐसे में आप चंडी हवन भी कर सकते हैं। हांलाकि चंडी हवन कभी भी किया जा सकता हैं, लेकिन नवरात्र में दुर्गा अष्टमी पर चंडी हवन करने का विशेष महत्व होता हैं और आपके सभी दुख-दर्द दूर होते हैं। तो आइये जानते हैं चंडी हवन की पूर्ण विधि के बारे में…
सर्वप्रथम कुश के अग्रभाग से वेदी को साफ करें। कुंड का लेपन करें गोबर जल आदि से। तृतीय क्रिया में वेदी के मध्य बाएं से तीन रेखाएं दक्षिण से उत्तर की ओर पृथक-पृथक खड़ी खींचें, चतुर्थ में तीनों रेखाओं से यथाक्रम अनामिका व अंगूठे से कुछ मिट्टी हवन कुण्ड से बाहर फेंकें। पंचम संस्कार में दाहिने हाथ से शुद्ध जल वेदी में छिड़कें। पंचभूत संस्कार से आगे की क्रिया में अग्नि प्रज्वलित करके अग्निदेव का पूजन करें।
इन मंत्रों से शुद्ध घी की आहुति दें :
– ॐ प्रजापतये स्वाहा। इदं प्रजापतये न मम।
– ॐ इन्द्राय स्वाहा। इदं इन्द्राय न मम।
– ॐ अग्नये स्वाहा। इदं अग्नये न मम।
– ॐ सोमाय स्वाहा। इदं सोमाय न मम।
– ॐ भूः स्वाहा। इदं अग्नेय न मम।
– ॐ भुवः स्वाहा। इदं वायवे न मम।
– ॐ स्वः स्वाहा। इदं सूर्याय न मम।
– ॐ ब्रह्मणे स्वाहा। इदं ब्रह्मणे न मम।
– ॐ विष्णवे स्वाहा। इदं विष्णवे न मम।
– ॐ श्रियै स्वाहा। इदं श्रियै न मम।
– ॐ षोडश मातृभ्यो स्वाहा। इदं मातृभ्यः न मम॥
इसके बाद नवग्रह के नाम या मंत्र से आहुति दें। गणेशजी की आहुति दें। सप्तशती या नर्वाण मंत्र से जप करें। सप्तशती में प्रत्येक मंत्र के पश्चात स्वाहा का उच्चारण करके आहुति दें। प्रथम से अंत अध्याय के अंत में पुष्प, सुपारी, पान, कमल गट्टा, लौंग 2 नग, छोटी इलायची 2 नग, गूगल व शहद की आहुति दें तथा पांच बार घी की आहुति दें। यह सब अध्याय के अंत की सामान्य विधि है। तीसरे अध्याय में गर्ज-गर्ज क्षणं में शहद से आहुति दें। आठवें अध्याय में मुखेन काली इस श्लोक पर रक्त चंदन की आहुति दें। पूरे ग्यारहवें अध्याय की आहुति खीर से दें। इस अध्याय से सर्वाबाधा प्रशमनम् में कालीमिर्च से आहुति दें। नर्वाण मंत्र से 108 आहुति दें।
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