December 20, 2024

Visitor Place of India

Tourist Places Of India, Religious Places, Astrology, Historical Places, Indian Festivals And Culture News In Hindi

धुनी रमाना – बहुत कठिन होती है ये साधना, जानिए इसकी पूरी प्रक्रिया !

सभी साधुओं की आराधना और तपस्या के तरीके अलग-अलग और कठोर होते हैं। भक्ति का ऐसा ही एक तरीका है धुनी रमाना। धुनी रमाने की क्रिया में साधु कठोर तप करता है और खुद के शरीर को तपाता है। ये क्रिया अलग-अलग तरह के हठयोगों में से एक है। धुनी रमाने की एक पूरी प्रक्रिया है और अलग-अलग चरणों में इसे किया जाता है।

आमतौर पर एक साधु को धुनी रमाने के सभी चरण पूरे करने में 18 साल से भी अधिक समय लग जाता है। जब धुनी रमाने के सभी चरण पूरे होते हैं, तब ही साधु का तप पूरा होता है। यहां जानिए धुनी रमाने की प्रक्रिया और उसके चरण…

ये है धुनी रमाने की क्रिया :
धुनी रमाने के लिए साधु एक स्थान पर बैठकर सबसे पहले अपने चारों ओर कंडे या उपलों का घेरा बनाता है। इसके बाद जलते हुए कंडों को घेरे में रखे हुए कंडों पर रखता है, जिससे घेरे के सभी कंडे जलने लगते हैं। जलते हुए कंडों के कारण भयंकर धुआं होता है और कंडों की गर्मी भी साधु को सहन करनी पड़ती है। इसी कंडों की धुनी में साधु अपने इष्ट देव के मंत्रों का जप करता है।

धुनी रमाने का पहला चरण :
धुनी रमाने की प्रक्रिया का पहला चरण है पंच धुनी। इसके अंतर्गत साधु पांच जगह कंडे रखकर गोल घेरा बनाता है, उन्हें जलाता है। इस घेरे में बैठकर साधु तप करता है।

धुनी रमाने का दूसरा चरण :
दूसरे चरण को सप्त धुनी कहा जाता है। इस चरण में साधु 7 जगह कंडे रखकर घेरा बनाता है। इन सात जलते कंडों के बीच बैठकर तप करता है।

धुनी रमाने का तीसरा चरण :
इस चरण को कहते हैं द्वादश धुनी। इसमें साधु 12 जगह जलते हुए कंडे रखकर गोल घेरे के बीच में बैठकर तप करता है।

धुनी रमाने का चौथा चरण :
इस चरण में साधु को 84 जगह कंडे रखकर घेरा बनाना पड़ता है। इसे चौरासी धुनी कहा जाता है। इस चरण में कंडों का घेरा बनाने के लिए साथी साधु की मदद लेनी होती है।

धुनी रमाने का पांचवां चरण :
धुनी रमाने के इस चरण को कोट धुनी कहा जाता है। इसमें साधु कंडों का घेरा बनाते समय जलते कंडों के बीच दूरी नहीं रखी जाती है। कंडे एकदम पास-पास रहते हैं, जिससे घेरे में बैठे साधु को असहनीय तपन और धुएं का सामना करते हुए तप करना होता है।

धुनी रमाने का अंतिम चरण :
छठें और अंतिर चरण को कोटखोपड़ धुनी कहा जाता है। ये धुनी रमाने की क्रिया का सबसे कठिन चरण है। इसमें साधु को अपने सिर पर मिट्टी के पात्र में जलते हुए कंडे रखकर तप करना होता है।