वाल्मीकि को प्राचीन वैदिक काल के महान ऋषियों कि श्रेणी में प्रमुख स्थान प्राप्त है। पुराणों के अनुसार, इन्होंने कठोर तपस्या कर महर्षि का पद प्राप्त किया था। परमपिता ब्रह्मा के कहने पर इन्होंने भगवान श्रीराम के जीवन पर आधारित रामायण नामक महाकाव्य लिखा। ग्रंथों में इन्हें आदिकवि कहा गया है। इनके द्वारा रचित आदिकाव्य श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण संसार का सर्वप्रथम काव्य माना गया है। आइए जानते है महर्षि वाल्मीकि के जीवन से जुडी कुछ रोचक बातें –
इस प्रकार लिखी महर्षि वाल्मीकि ने रामायण
रामायण के अनुसार, एक बार महर्षि वाल्मीकि तमसा नदी के तट पर गए। वहां उन्होंने प्रेम करते क्रौंच (सारस) पक्षी के जोड़े को देखा। वे दोनों पक्षी मधुर बोली बोलते थे। तभी उन्होंने देखा कि एक निषाद (शिकारी) ने क्रौंच पक्षी के जोड़े में से नर पक्षी का वध कर दिया और मादा पक्षी विलाप करने लगी। उसके इस विलाप को सुन कर महर्षि की करुणा जाग उठी और अनायास ही उनके मुख से ये शब्द निकले-
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम: शाश्वती: समा:।
यत् क्रौंचमिथुनादेकमवधी: काममोहितम्॥
अर्थात- निषाद। तुझे कभी भी शांति न मिले, क्योंकि तूने इस क्रौंच के जोड़े में से एक की, जो काम से मोहित हो रहा था, बिना किसी अपराध के ही हत्या कर डाली।
तब महर्षि वाल्मीकि ने सोचा कि अचानक ही उनके मुख से श्लोक की रचना हो गई। जब महर्षि वाल्मीकि अपने आश्रम पहुंचे तब भी उनका ध्यान उस श्लोक की ओर ही था। तभी महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में भगवान ब्रह्मा आए और उनसे कहा कि- आपके मुख से निकला यह छंदोबद्ध वाक्य (गाया जाने वाला) श्लोक रूप ही होगा। मेरी प्रेरणा से ही आपके मुख से ऐसी वाणी निकली है। अत: आप श्लोक रूप में ही श्रीराम के संपूर्ण चरित्र का वर्णन करें। इस प्रकार ब्रह्माजी के कहने पर महर्षि वाल्मीकि ने रामायण महाकाव्य की रचना की।
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रत्नाकर से बने महर्षि वाल्मीकि
धर्म ग्रंथों के अनुसार, महर्षि वाल्मीकि का पूर्व नाम रत्नाकर था। ये अपने परिवार के पालन-पोषण के लिए लूट-पाट करते थे। एक बार उन्हें निर्जन वन में नारद मुनि मिले। जब रत्नाकर ने उन्हें लूटना चाहा, तो उन्होंने रत्नाकर से पूछा कि- यह काम तुम किसलिए करते हो? तब रत्नाकर ने जवाब दिया कि- अपने परिवार
के भरण-पोषण के लिए। नारद ने प्रश्न किया कि- इस काम के फलस्वरूप जो पाप तुम्हें होगा, क्या उसका दंड भुगतने में तुम्हारे परिवार वाले तुम्हारा साथ देंगे?
नारद मुनि के प्रश्न का जवाब जानने के लिए रत्नाकर अपने घर गए। परिवार वालों से पूछा कि- मेरे द्वारा किए गए काम के फलस्वरूप मिलने वाले पाप के दंड में क्या तुम मेरा साथ दोगे? रत्नाकर की बात सुनकर सभी ने मना कर दिया। रत्नाकर ने वापस आकर यह बात नारद मुनि को बताई। तब नारद मुनि ने कहा कि- जिन लोगों के लिए तुम बुरे काम करते हो यदि वे ही तुम्हारे पाप में भागीदार नहीं बनना चाहते तो फिर क्यों तुम यह पापकर्म करते हो?
नारद मुनि की बात सुनकर इनके मन में वैराग्य का भाव आ गया। अपने उद्धार के उपाय पूछने पर नारद मुनि ने इन्हें राम नाम का जाप करने के लिए कहा। रत्नाकर वन में एकांत स्थान पर बैठकर राम-राम जपने लगे। लेकिन अज्ञानतावश राम-राम की जगह मरा-मरा जपने लगे। कई वर्षों तक कठोर तप के बाद उनके पूरे शरीर पर चींटियों ने बाँबी बना ली जिस कारण उनका नाम वाल्मीकि पड़ा। कालांतर में महर्षि वाल्मीकि ने रामायण महाकाव्य की रचना की।
प्रचेता के पुत्र थे महर्षि वाल्मीकि
महर्षि वाल्मीकि को कुछ लोग निम्न वर्ग का मानते हैं, जबकि वाल्मीकि रामायण में स्वयं वाल्मीकि ने श्लोक संख्या 7/93/17, 7/93/19 और आध्यात्म रामायण 7/7/31 में इन्होंने स्वयं को प्रचेता का पुत्र कहा है।
प्रचेतसोअहं दशम: पुत्रो राघवनन्दन
मनुस्मृति 1/35 में प्रचेता को वशिष्ठ, नारद, पुलस्त्य, कवि आदि का भाई बताया गया है। स्कंदपुराण के वैशाख माहात्म्य में इन्हें जन्मांतर (पूर्व जन्म) का व्याध (शिकारी) बतलाया है। व्याध जन्म के पहले ये स्तंभ नाम के श्रीवस्तगोत्रीय ब्राह्मण थे। व्याध जन्म में शंख ऋषि के सत्संग से, राम नाम के जाप से ये दूसरे जन्म में अग्निशर्मा (मतांतर से रत्नाकर) हुए। वहां भी व्याधों के संग के कुछ दिन संस्कारवश व्याध कर्म करने लगे। फिर सप्तर्षियों के सत्संग से मरा-मरा जपकर बांबी पड़ने से वाल्मीकि नाम से प्रसिद्ध हुए और वाल्मीकि रामायण की रचना की।
अन्य फैक्ट्स
महर्षि वाल्मीकि ने रामायण महाकाव्य में अनेक स्थानों पर सूर्य, चंद्र, व अन्य नक्षत्रों की स्थितियों का वर्णन किया है। साथ ही उन्होंने रावण की मृत्यु के पूर्व राक्षसी त्रिजटा के स्वप्न, श्रीराम के यात्राकालिक मुहूर्त विचार, विभीषण द्वारा लंका के अपशकुनों आदि के बारे में विस्तार पूर्वक बताया है। इससे पता चलता होता है कि महर्षि वाल्मीकि ज्योतिष विद्या एवं खगोल विद्या के भी प्रकांड पंडित थे।
अपने वनवास काल के दौरान भगवान श्रीराम लक्ष्मण व सीता सहित महर्षि वाल्मीकि के आश्रम गए थे। श्रीरामचरितमानस के अनुसार-
देखत बन सर सैल सुहाए। बालमीक आश्रम प्रभु आए॥
तथा जब श्रीराम ने सीता का परित्याग कर दिया, तब महर्षि वाल्मीकि ने ही सीता को आश्रय दिया था। इससे सिद्ध होता है कि महर्षि वाल्मीकि श्रीराम के समकालीन थे तथा उनके जीवन में घटित प्रत्येक घटनाओं की जानकारी महर्षि वाल्मीकि को थी।
रामायण महाकाव्य में 24 हजार श्लोक, पांच सौ उपखंड तथा उत्तर सहित सात कांड हैं।
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