मुस्लिम समुदाय के तीर्थस्थल मक्का और मदीना को बहुत पाक और पवित्र माना जाता है. इस तीर्थ यात्रा को हज यात्रा कहते है, हर मुस्लिम अपनी लाइफ में एक बार तो यहाँ जाना ही चाहता है. जहाँ जाना हर उस मुस्लिम इन्सान के लिए जरुरी होता है, जो शारीरिक एवं आर्थिक रूप से मजबूत होता है, और उसकी गैरहाजिरी में उसके परिवार का भरन पोषण अच्छे से हो सकता है. मक्का सऊदी अरब में स्थित है, कहते है यह दुनिया के बीचों बीच का स्थान है. यहाँ दुनिया के चारों ओर से लोग जाते है और एक साथ लाखों में लोग इक्कठे होकर दुआ करते है. यह इस्लाम के पांच स्तंभों शहादा, सलत, जकात और स्वान जो कुरान में निर्धारित है उनमें से एक है. ये दोनों शहर इस्लाम के दो अभयारण्य है. यह इस्लाम का उद्गम स्थल है. पहले इस शहर में सिर्फ मुसलमानों को ही प्रवेश की अनुमति थी, लेकिन अब यहाँ सभी जा सकते है. इसके बारे में यहाँ सारी जानकारी दी गई है.
मक्का (Mecca)
मक्का शहर ऐसा शहर है जहाँ अल्लाह की प्रार्थना के लिए पहला घर बनाया गया था. इस शहर की पवित्र मस्जिद में प्रार्थना करना 1,00,000 प्रार्थना के बराबर है. मुसलमान भक्त दुनियाभर में कही भी हो प्रतिदिन 5 बार मक्का के सामने झुककर प्रार्थना करते है. मक्का साम्राज्य की राजधानी समुन्द्रतल से 277 मीटर ऊँची जिन्नाह की घाटी पर शहर से 70 किलोमीटर के अंदर में स्थित है. यहाँ से कुरान की भी शुरुआत हुई थी. मक्का से 3 किलोमीटर की दूरी पर एक विशेष गुफ़ा है जिसे काबा का घर माना जाता है.
मक्का का इतिहास (Mecca History)
मक्का में ईश्वर के दूत, मुस्लिम आस्था के संस्थापक पैगंबर मुहम्मद का जन्म 570 में हुआ था. अल्लाह के संदेशवाहक और हजरत पुत्र पैगंबर इब्राहीम और पैगंबर इस्माइल ने इस शहर का दौरा करते हुए अपने जीवन का अधिकांश समय यहाँ बिताया था. मक्का वासियों और मुहम्मद के बीच मतभेद हो गया था, उसके बाद पैगंबर मक्का से पलायन कर मदीना चले गए. सऊदी अरब के मक्का में इस्लाम का सबसे पवित्र स्थान काबा मस्जिद है, यह मस्जिद मुस्लिम परम्परा के अनुसार काले पत्थरों से पहली बार अदम के द्वारा फिर उसके बाद अब्राहम और उनके बेटे इशमेल के द्वारा निर्मित करवाई गयी है. मक्का पर बहुत समय तक स्वतंत्र रूप से मुहम्मद के वंशज सरीफ़ का शासन था. मक्का शहर का निर्माण 1925 में हुआ था.
मदीना (Madina)
इस्लाम का दूसरा सबसे पवित्र स्थान मदीना का है. मदीना का अर्थ है ‘पैगम्बर का शहर’. यह शहर पश्चिमी सऊदी अरब के लाल सागर से लगभग 100 मील की दूरी और सड़क मार्ग से 275 मील की दूरी पर हेजाज क्षेत्र में स्थित है. यह हज यात्रा का हिस्सा नहीं है. किन्तु तीर्थयात्री अगर चाहें तो वे मदीना भी जा सकते है.
मदीना का इतिहास (Madina History)
मदीना का प्रारम्भिक इतिहास अस्पष्ट है लेकिन यह माना जाता है कि वहां पहले से ही ईसाई काल में फिलिस्तीन से निष्कासन के परिणामस्वरूप यहूदी आकर बसे हुए थे, लेकिन बाद में उनका वहां से पलायन हो गया. सितम्बर 622 को पैगंबर मुहम्मद के मदीना की यात्रा से नखलिस्तान के इतिहास में एक नया अध्याय शुरू हुआ. इस यात्रा की तारीख से मुस्लिम कैलेंडर की शुरुआत होती है जिसे हिजरा कहते है. 632 में अराफात के मैदान में मुहम्मद ने अपने 30,000 अनुयायियों के साथ इकट्ठी भीड़ को संदेश देते हुए कहा कि पृथ्वी पर अब उनका मिशन पूरा हुआ, उसके दो महीने बाद ही मदीना में उनका निधन हो गया. निधन होने के बाद उन्हें यहाँ दफनाया गया था. इस वजह से उनकी कब्र को भी एक पवित्र स्थल माना जाता है. यहूदियों के जाने के बाद मदीना में तेजी से इस्लाम का विस्तार हुआ और यह इस्लामिक राज्य की प्रसासनिक राजधानी बन गयी. 21 वीं सदी में इस्लाम विश्व के सबसे बड़े धर्मों में से एक धर्म है.
हज यात्रा का समय (Hajj Dates)
हज यात्रा की तारीख इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से तय होती है. हर साल हर यात्रा 5 दिनो की अवधि की होती है. जो इस्लामिक कैलेंडर के आखिरी महीने धू-अल-हिजाह की आठवें दिन से 12वें दिन तक की होती है. इन पांच दिनों में जो नौवां धुल हिज्जाह होता है, उसे अरफाह का दिन कहते है, और इसे ही हज का दिन कहा जाता है. अल हिजरा इस्लामिक नया साल होता है. इस्लामिक कैलेंडर चंद्र कैलेंडर के हिसाब से चलता है, और इस्लामिक साल ग्रेगोरियन साल से 11 दिन छोटा है. जिस वजह से ग्रेगोरियन की तारीख हज के लिए हर साल बदलती रहती है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार हज यात्रा हर साल पिछले साल की हर यात्रा से 11 दिन पहले शुरू हो जाती है. ऐसा होने से हर 33 साल में ऐसा समय भी आता है, जब एक ही ग्रेगोरियन साल में 2 बार हज यात्रा पड़ जाती है. आखिरी बार ऐसा 2006 में हुआ था.
हज यात्रा के रीती रिवाज, विधि (How to do Hajj Yatra step by step)
तीर्थयात्री साल के बाकि समय में भी मक्का जा सकते है, इसे छोटी तीर्थयात्रा या उमराह कहते है. अगर कोई उमराह करता भी है, लेकिन वो तब भी अपने जीवन में एक बार हज यात्रा पूरी करने के लिए बाध्य होता है. उमराह करने से उसकी हज यात्रा नहीं होती है.
फिक़्ह साहित्य में विस्तार से बताया गया है कि हज यात्रा में जाते समय किन शिष्टाचारों, आदर्शों का पालन करना चाहिए. इस्लामी न्यायशास्त्र में बताया गया है कि कैसे एक हजयात्री हज के संस्कारों को पूरा कर सकता है. हर तीर्थयात्री इन बातों को ध्यानपूर्वक पूरा करता है, ताकि वो हज यात्रा को अच्छे से पूरा कर सके. हज यात्रा के दौरान तीर्थयात्रि केवल मुहम्मद की बातों का पालन नहीं करते है, बल्कि वे इब्राहीम के साथ जुड़ी घटनाओं की स्मृति अपने जहन में रखते है.
हज यात्रा के दौरान तीर्थयात्री को आध्यात्म और एकता की भावना रखना चाहिए. सभी मुसलमानों को समान अधिकार, प्रदर्शन और समानता की भावना में साझा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. सभी तीर्थयात्रियों को हज के दौरान जितना संभव हो सके, पवित्रता और सादगी में रहना चाहिए. यात्रा के दौरान पुरुषो को साधारण से सफ़ेद रंग के कपड़े पहनने चाहिए, औरतों के लिए कोई रंग निश्चित नहीं है लेकिन उन्हें भी साधारण से कपड़े ही पहनने चाहिए.
- इहराम (How to wear Ihram for Haj) – यह मक्का से 6 किलोमीटर दूर है. जिस दिन तीर्थयात्री पवित्र राज्य में जाते है उसे इहराम कहते है. यहाँ पुरुषों को सफ़ेद कपड़े धारण करने होते है, जो बिना किसी गठान के बिना सिले होते है. साधारण सी चप्पल भी पहन सकते है. यहाँ किसी भी तरह का इत्र शरीर में लगाया जाता है. नाख़ून काटना, बाल मुंडवाना यहाँ होता है कि नहीं ये कही क्लियर नहीं है. औरतों को साधारण से कपड़े पहनने होते है, लेकिन उनके हाथ एवं मुंह खुले होने चाहिए. इहराम का मतलब है कि खुदा के सामने सभी समान है, उसके सामने अमीर गरीब, नर, नारी कुछ भी अलग नहीं है.
- तवाफ़ – तीर्थयात्री बड़ी मस्जिद, मस्जिद-अल-हराम में प्रवेश करते है. यहाँ बीच में स्थित कावा ईमारत के चारों ओर सात बार चक्कर लगाते है. हर एक चक्कर की शुरुवात में काले पत्थर ‘हजार-अल-अस्वाद’ को छूते और चुमते है. बहुत अधिक भीड़ होने पर तीर्थयात्री उस पत्थर की ओर हाथ से इशारा करके फेरा शुरू कर सकते हैं. यहाँ खाना वर्जित होता है, लेकिन बहुत अधिक गर्मी की वजह से यहाँ पानी पी सकते है. पुरषों को पहले तीन फेरे जल्दी जल्दी तेज चलकर पुरे करने को कहा जाता है, जिसे रामाल कहते है. तवाफ़ पूरा करने के बाद दो रकात प्रार्थना होती है, जो काबा के पास मस्जिद के बाहर इब्राहम के स्थान में होती है. हज के दौरान बहुत अधिक भीड़ होने के कारण तीर्थयात्री मस्जिद के किसी भी स्थान में इस प्रार्थना को पूरा कर सकते है. इस प्रार्थना के बाद तीर्थयात्री ज़म ज़म से पानी पीते है, जो मस्जिद में जगह जगह कूलर में मौजूद होता है. वैसे काबा के चारों ओर फेरे नीचे के तल में लगाये जाते है, लेकिन भीड़ होने के कारण तवाफ़ पहले तल एवं मस्जिद की छत में भी पूरा किया जा सकता है.
- साय – तवाफ़ के बाद साय की प्रक्रिया होती है. इसमें सफा और मारवाह की पहाड़ियों के बीच सात बार चल कर दौड़ कर चक्कर लगाया जाता है. जो काबा के पास स्थित है. पहले ये खुला एरिया था, लेकिन अब यह क्षेत्र पूरी तरह से मस्जिद, अल-हरम-मस्जिद से घिरा है और वातानुकूलित सुरंगों के माध्यम से वहां पहुँचा जा सकता है. तीर्थयात्रियों को यहाँ चलने की सलाह दी जाती है, जबकि यहाँ 2 हरे खम्भे अलग से लगे है, जहाँ तीर्थयात्री दौड़ कर फेरा पूरा कर सकते है. वहाँ विकलांगों के लिए एक अलग से आंतरिक “एक्सप्रेस लेन” भी है. साय के बाद पुरुष अपने बाल मुंडवा लेते है, जबकि औरतें अपने बालों को क्लिप से बांध लेती है. इस तरह उमराह या इहराम की रीती पूरी होती है.
मक्का मदीना जाने के लिए जरुरी कागज़ात (Required Documents for Mecca Madina Travels)
जो इस शहर के निवासी है उन्हें अपना आई डी अर्थात पहचान पत्र रखना होता है, क्योकि सुरक्षाकर्मी इसे देखने के बाद ही आगे बढ़ने देते है. और जो दुसरे देश के यात्री है उन्हें अपने पहचान पत्र के साथ वीजा (पासपोर्ट) रखना अनिवार्य है. हर शहर के अपने कुछ क़ानूनी नियम होते है, उसी तरह यहाँ भी जाने के लिए सबसे पहले इस पवित्र धर्म के प्रति आप में आस्था होनी चाहिए. साथ ही इस शहर में शराब पीना और गंदगी फैलाना सख्त मना है.
मक्का से मदीना की दूरी (Distance between Mecca and Madina)
मक्का, मदीना के दक्षिण तरफ़ से नजदीक है. अतः मदीना से मक्का के बीच दुरी हवाई मार्ग से 339 किलोमीटर है, रोड मार्ग से 439 किलोमीटर है. रेल मार्ग से मक्का और मदीना के बीच की दुरी 453 किलोमीटर है.
भारत से मक्का और मदीना की दूरी और पहुँचने का तरीका (How to Reach Makkah Madina from India)
इस पवित्र शहर की यात्रा करने के लिए लोग देश विदेश से भी आते है. इसकी यात्रा जहाज और हवाई मार्ग के द्वारा भी की जा सकती है.
- हवाई मार्ग द्वारा : भारत से मक्का और मदीना जाने के लिए आप दिल्ली, मुम्बई और बंगलौर से हवाई मार्ग के द्वारा सऊदी अरब के अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा जेद्दाह जा सकते है. यह मक्का और मदीना की तीर्थ यात्रा का प्रवेश द्वार है. उडान विकल्प के रूप में आप कुवैत एयरवेज, एयर इण्डिया, जेट एयरवेज और ओमान एयरवेज जैसी एयरलाइन्स सेवा का चुनाव कर सकते है. हवाई मार्ग के द्वारा दिल्ली से सऊदी अरब के जेद्दा एअरपोर्ट की दूरी 3836.68 किलोमीटर की है.
प्रत्येक एयरलाइन्स की टिकट का मूल्य अलग-अलग हो सकता है. टिकटों का मूल्य यात्री वर्ग या यात्रा के समय पर भी निर्भर है, अगर आप रमजान के महीने में यात्रा करते है तो टिकटों का मूल्य ज्यादा होगा. सामन्यतः दिल्ली से जेद्दा तक की हवाई सफ़र के लिए टिकटों का मूल्य 17,000 रूपये से शुरू होता है. अगर आप बिज़नेस वर्ग में सफ़र करते है तो 27,500 रूपये और इकॉनोमी वर्ग में सफ़र करते है तो आपको 1,52000 तक भुगतान करना पड़ेगा. हवाई सफ़र के माध्यम से इस सफ़र को 6 घंटे में पूरा किया जा सकता है.
- समुद्र मार्ग द्वारा : मक्का और मदीना की यात्रा 1995 के बाद से समुद्र मार्ग से बंद है, लेकिन एक पीटीआई रिपोर्ट के अनुसार सरकार 2018 से फिर समुद्र मार्ग सेवा को शुरू कर सकती है. जिस वजह से मुम्बई के बंदरगाह से जेद्दा की 2515 नॉटिकल मील (1 नॉटिकल मील की दूरी 1.8 किलोमीटर के बराबर होती है) अर्थात 4527 किलो मीटर की दूरी को 2 से 3 दिनों में पूरा किया जा सकेगा.
वैसे भारत की नई दिल्ली से मक्का और मदीना की लगभग ड्राइविंग दूरी 9487 किलोमीटर की है. जिसको पूरा करने में लगभग 7 दिन 21 घंटा 44 मिनट तक का समय लग सकता है.
हज यात्रा के पांच दिन की जानकारी (Hajj Yatra 5 days information)
- हज का पहला दिन (आठवां दिन धुअल–हिज्जाह) – मक्का में आते ही, पहले दिन तीर्थयात्री जहाँ पहुँचते है उसे मीना क्षेत्र कहते है. जहाँ हर तीर्थयात्री पूरा दिन प्रार्थना में बीताता है. यहाँ तीर्थयात्रियों के लिए 1 लाख से भी ऊपर अस्थाई टेंट लगाये जाते है, जहाँ उनके रहने की व्यवस्था होती है. यह देखने में एक बड़ा टेंट का शहर का दिखाई पड़ता है. यहाँ सुबह, दोपहर, शाम, रात की प्रार्थना हर तीर्थयात्री करता है. अगले दिन सुबह की प्रार्थना के बाद वे मीना को छोड़ अराफात के लिए आगे बढ़ते है.
- हज का दूसरा दिन (नौवां दिन धुअल–हिज्जाह) –
- अरफाह – इसे अरफाह का दिन एवं हज का दिन भी कहते है. दोपहर के पहले तीर्थयात्री अरफाह पर्वत में पहुँचते है, जिसे दया का पर्वत भी कहते है. यह मक्का के पूर्व में 20 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है. यहाँ तीर्थयात्री अपने द्वारा किये गए सभी पापों के लिए माफ़ी मांगते थे, वे पूरा दिन यहाँ व्यतीत करते है, और इस्लाम धर्म के वचनों को सुनते है. यह सूर्यास्त तक ऐसा करते है, फिर कहते है, इस समय तीर्थयात्री ‘भगवान के सामने खड़े’ होते है. अगर कोई तीर्थयात्री अराफात में अपनी दोपहर नहीं बिताता है तो उसकी हज यात्रा को अवैध माना जाता है. इसके बाद मस्जिद अल-निमराह में तीर्थयात्री दोपहर एवं शाम की प्रार्थना साथ में करते है. दुनिया के हर हिस्से में जो मुस्लिम हज यात्रा में नहीं जाते है, वे भी यह दिन प्रार्थना, उपवास में व्यतीत करते है.
- मुज्दालिफा – तीर्थयात्री सूर्यास्त के बाद अरफाह को छोड़ मुज्दालिफा के लिए जाते है. मुज्दालिफा एक क्षेत्र है जो अरफाह और मीना के बीच स्थित है. यहाँ पहुचंने के बाद तीर्थयात्री मग़रिब और ईशा की प्रार्थना साथ में करते है. यहाँ सभी रात भर प्रार्थना करते है, और खुले आसमान के नीचे ही रात बिताते है. साथ ही अगले दिन शैतान को पथराव करने के लिए पत्थर भी इकठ्ठा करते है.
- हज का तीसरा दिन(दसवां दिन धुअल–हिज्जाह) – मुज्दालिफा से आने के बाद तीर्थयात्री मीना में दिन बिताते है.
- रामी अल–जमारत – मीना आने के बाद तीर्थयात्री तीन सबसे ऊँचे खम्भों, जो जमरात अल-अक़बह कहते है, को सात पत्थर मारते है. इसे शैतान को पत्थर मारना कहता है. पत्थर मारने की प्रक्रिया सुबह से शाम तक होती है, इस दिन बाकि 2 खम्बों को पत्थर नहीं मारा जाता है. इन खम्भों को शैतान का रूप कहा जाता है. सुरक्षा की द्रष्टि से 2004 में इन खम्भों को अब दीवार का रूप दे दिया गया है, जहाँ पत्थरों को इकट्ठे करने की भी व्यवस्था है.
- पशु बलि – शैतान को पत्थर मारने के बाद, इब्राहीम और इश्माएल की कहानी के अनुसार पशु बलि दी जाती है. परंपरागत रूप से तीर्थयात्रियों पशु बलि के लिए खुद पशु की बलि देते है या कत्लेआम को देखते है. आजकल कई तीर्थयात्री हज शुरू होने से पहले मक्का में एक बलिदान वाउचर खरीद लेते है, जो एक जानवर को 10 तारीख को, तीर्थयात्री की अनुपस्थिति में बलि कर देते है. इसके बाद इस मीट को दुनिया के हर हिस्से में गरीबों को बाँट दिया जाता है. जिस दिन मक्का में ये पशु बलि होती है, उसी दिन सभी मुस्लिम समुदाय पूरी दुनिया में तीन दिन का ईद अल-अधा अर्थात बकरीद का त्यौहार मनाते है.
- बाल मुंडवाना – पशु बलि के बाद बाल देना हज यात्रा की मुख्य प्रक्रिया है. इसमें बाल मुंडवाते है या कटवा लेते है. ईद अल-अधा के दिन सभी पुरुष बाल मुंडवाते या कटवाते है, जबकि महिलाएं अपने ऊपरी बालों को काटती है.
- तवाफ अल–इफादाह – इसी दिन तीर्थयात्री मस्जिद अल-हरम मक्का में फिर तवाह के लिए जाते है, जिसे तवाफ अल-इफादाह कहते है. हज के समय यह भगवान को प्यार दिखाने का प्रतीक है. यह रात मीना में ही गुजारी जाती है.
- हज का चौथा दिन (ग्यारवाँ दिन धुअल–हिज्जाह) – इस दिन फिर से तीन खम्भों को सात पत्थर मारे जाते है. इसे भी शैतान को पत्थर मारना कहते है.
- हज का पांचवां दिन (बारहवां दिन धुअल–हिज्जाह) – इस दिन भी सात पत्थर मारे जाते है.
- हज का आखिरी दिन – मक्का जाने से पहले एक बार फिर पत्थर मारे जाते है.
- तवाफ़ अल–वादा – मक्का से जाने के पहले तीर्थयात्री तवाफ़ अल-वादा करते है. जाने से पहले अगर हो सके तो, तीर्थयात्री काबा को एक बार छुते और चुमते है.
मक्का मदीना के दार्शनिक स्थल और मुसलमानों में उसका महत्व (Importance of Mecca and Medina in Islam)
मक्का शहर पैगंबर मुहम्मद द्वारा एक तीर्थ स्थल घोषित किया गया था. यह इस्लाम का पांचवा स्तम्भ है. यह शहर सऊदी अरब की व्यापारिक, सांस्कृतिक और मनोरंजन का केंद्र है. यहाँ पर कई ऐतिहासिक स्थल है, यहाँ नसीफ हाउस, बिच, किंग फ़हद का फाउंटेन और जेद्दा कॉर्निश यात्रियों के आकर्षण के केंद्र हैं. इसके अलावा –
- मक्का में आयताकार एक बहुत खुबसूरत इमारत है जिसके चारों तरफ़ ग्रेनाईट के पत्थरों से बना हुआ मस्जिद है. इस ईमारती मस्जिद के बीच में काबा स्थित है काबा अरबी शब्द है जिसका अर्थ “घन” होता है. यह मक्का के ग्रैंड मस्जिद के बीचों बीच दैनिक पूजा का केंद्र बिंदु है, जिसमें मात्र एक दरवाज़ा है. यह काबा 40 फीट लंबा होने के साथ ही 33 फीट चौड़ा भी है. यात्री इस काबा के सात चक्कर लगाते है और उसके बाद उसे चुमते है. उनका ऐसा विश्वास है कि मुहम्मद अभी भी जो काला बॉक्स है उसमे है.
- इसके पास ही एक जम जम का पवित्र कुआं है जिसका पानी कभी नहीं सूखता है. इस यात्रा से सभी मुसलमानों के एकीकरण अर्थात मुस्लिम एकता, एकजुटता का भी प्रदर्शन प्रदर्शित होता है. सभी मुसलमान मक्का और काबा की दिशा में मुख कर प्रार्थना करते है इस दिशा को क़िबला के रूप में जाना जाता है.
- मक्का में मुहम्मद के पैरों के चिन्ह को सुरक्षित रखा गया है उन पैरों के चिन्ह का भी यात्री दर्शन करते है.
- मदीना को अरबी भाषा के लम्बे रूप में ‘मदिनत रसूल अल्लाह अर्थात अल्लाह के पैगंबर के शहर के नाम से और छोटे रूप में इसे अल मदीना के नाम से पुकारते है. इसलिए यह भी एक पवित्र स्थान माना जाता है.
- पैगंबर मुहम्मद के कब्र के एक तरफ़ धार्मिक स्थल मस्जिद अल नबवी है.
- मक्का और मदीना बहुत बड़ा व्यापारिक केंद्र भी है. इन शहरों के सौन्दर्यीकरण और देखभाल का खर्च यहाँ पर आने वाले तीर्थ यात्रियों से जो कर वसूला जाता है उस रकम से किया जाता है. यहाँ बरसात बहुत कम होती है जिस वजह से यहाँ की भूमि बालू जैसी है और अनुपजाऊ भी है.
इस तरह इस तीर्थ स्थल का मुसलमानों में बहुत महत्व है. सऊदी अरब की सरकार हर साल यहाँ अच्छे से अच्छे इंतजाम करने के प्रयास करती है, ताकि ज्यादा से ज्यादा तीर्थयात्री यहाँ आ सकें और अच्छे से अपनी हज यात्रा पूरी कर सकें. आवास, परिवहन, सफाई और स्वास्थ्य देखभाल मुख्य मुद्दे है, जिन पर विशेष कार्य किया जाता है. अब यहाँ तीर्थयात्री आधुनिक सुविधा का भी लाभ उठा सकते है. सऊदी अरब सरकार हर देश के लिए एक कोटा निश्चित करती है, उसी के अनुसार लोग वहां जा सकते है. मक्का के हर कोने में सुरक्षा की द्रष्टि से cctv कैमरा लगाये गए है. तीर्थयात्री ज्यादातर हज की यात्रा समूह में पूरी करते है.
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