वैसे तो वेस्ट यूपी में ऐसी कई स्थान ऐसे हैं जहां घूमकर आप जानकारी हासिल करने के साथ काफी आनंद भी उठा सकते हैं, लेकिन वेस्ट यूपी के हम जिस स्थान की बात कर रहे हैं वो इतिहास के उन सुनहरे पन्नों से जुड़ा है जिसे जानकर आप भी काफी स्तब्ध हो जाएंगे। जी हां, हम हस्तिनापुर की बात रहे हैं, जो उत्तर प्रदेश राज्य में मेरठ शहर के नजदीक, गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है। हस्तिनापुर शहर के इतिहास की जड़ें महाभारत काल से जुड़ी हैं।
जानकारों के अनुसार हस्तिनापुर, कौरवों की राजधानी थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहां पांडवों और कौरवों के मध्य महाभारत का युद्ध हुआ था। इस युद्ध में पांडव जीते थे और उन्होंने अगले 36 सालों तक हस्तिनापुर पर राज किया था। इसके सुबूत कई इतिहासकारों ने समय-समय पर दिए हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इस शहर के कई हिस्सों में खुदाई की है। यहां के कई मंदिरों व स्मारकों का पता लगाया जा रहा है। हस्तिनापुर जैन समुदाय के लोगों के लिए भी एक पवित्र स्थल है। जैन धर्म के 24 तीर्थांकरों में से 3 तीर्थांकर का जन्म यहीं हुआ था। इस शहर में हर वर्ष भारी संख्या में जैन श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।
उत्खनन से ज्ञात होता है कि हस्तिनापुर की सर्वप्राचीन बस्ती 1000 ई. पूर्व से पहले की अवश्य थी और यह कई शतियों तक स्थित रही। दूसरी बस्ती 90 ई. पू. के लगभग बसाई गई थी, जो 300 ई. पू. के लगभग तक रही। तीसरी बस्ती 200 ई. पू. से लगभग 200 ई. तक विद्धमान थी और अन्तिम 11वीं से 14वीं शती तक। इस प्रकार हस्तिनापुर का इतिहास कई बार बना और बिगड़ा। विभिन्न नाम परवर्ती काल में जैन धर्म के तीर्थ के रूप में इस नगर की ख्याति बनी रही। प्राचीन संस्कृत साहित्य में इस नगर के हास्तिनापुर के अलावा गजपुर, नागपुर, नागसाय, हस्तिग्राम, आसन्दीवत और ब्रह्मस्थल आदि नाम मिलते हैं।
कहा जाता है कि हाथियों के बहुतायत के कारण इस प्रदेश का प्रथम नाम गजपुर था। फिर राजा हस्तिन के नाम पर यह हस्तिनापुर कहलाया और महाभारत के युद्ध के पश्चात यह नाग जाति का प्रमुख होने से नागपुर या नागसाय कहलाया। ये सब पर्यायवाची नाम हैं। आसंदीवत का बौद्ध साहित्य में उल्लेख मिलता है। वसुदेव हिंडि नामक ग्रंथ में ब्रह्मस्थल नाम भी मिलता है। यह जैन ग्रंथ है। कालीदास का उल्लेख कालिदास ने अभिज्ञान शाकुंतलम में दुष्यंत की राजधानी हस्तिनापुर का उल्लेख किया है। दुष्यंत से गंघर्व विवाह होने के पश्चात शकुंतला ऋषि कुमारों के साथ कण्वाश्रम से दुष्यंत की राजधानी हस्तिनापुर गई थी। वर्तमान हस्तिनापुर नामक ग्राम में जो इसी नाम से आज तक प्रसिद्ध है। प्राचीन नगर के खंडहर, ऊंचे-नीचे टीलों की श्रृंखलाओं के रूप में दूर-दूर तक फैले हैं। मुख्य टीला विदुर का टीला या उलटखेड़ा कहलाता है। इसकी खुदाई से अनेक प्राचीन अवशेष प्रकाश में आये हैं।
जैन तीर्थ जैन समुदाय के बीच हस्तिनापुर को एक प्रमुख तीर्थ माना जाता है। हस्तिनापुर जैन धर्मावलंबियों का भी प्रसिद्ध तीर्थ है। यहां जैन धर्म के कई तीर्थंकरों का जन्म हुआ था। यही वजह है कि यहां काफी संख्या में जैन मंदिर मौजूद हैं। यहीं पर राजा श्रेयांस ने आदितीर्थकर ऋषभदेव को गन्ने के रस का दान दिया था। इसलिए इसको दानतीर्थ कहते हैं। इसका संबंध शांतिनाथ, कुन्थुनाथ और अरनाथ नामक तीर्थकरों से भी है। यहां भगवान शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ, अरहनाथ के चार-चार कल्याणक हुए हैं। यहां अनेक जैन धर्मशालाएं और मंदिर हैं। खुदाई के दौरान यहां अनेक प्राचीन खंडहर मिले। इनमें करीब 200 साल पुराना बड़ा मंदिर जंबूद्वीप, कैलाश पर्वत, अष्टापद जी, कमल मंदिर और ध्यान मंदिर मुख्य है।
इतिाहासकारों के अनुसार जैन ग्रंथ विविधतीर्थकल्प में महाराज ऋषभदेव ने अपने संबंधी कुरु को कुरूक्षेत्र का राज्य दे दिया था। इन्हीं कुरु के पुत्र हस्ति ने हस्तिनापुर को भागीरथी के किनारे बसाया था। हस्तिनापुर में शान्ति, कुंधु और अरनाध तीर्थंकरों का जन्म हुआ था। ये 16वें, 17वें और 18वें तीर्थंकर थे। 5वें, 6वें और 7वें तीर्थंकरों ने यहां कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया था। हस्तिनापुर नरेश बाहुबली के पौत्र श्रेयांश के निवास स्थान पर ऋषभदेव ने प्रथम उपवास का पारण किया था। इनके अतिरिक्त सनत्कुमार, महापद्म, सुभूभ और परशुराम का जन्म भी हस्तिनापुर में हुआ था।
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