उत्तराखंड में एक ऐसी जगह है, जहां पिंडदान व तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। हम बात कर रहे हैं चमोली जनपद के बदरीधाम स्थित ब्रहमकपाल की।
मान्यता है कि यहां भागवान शिव को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी। चमोली जनपद में बदरीनाथ धाम में अलकनंदा के तट पर ब्रहमकपाल ऐसा स्थान है, जहां पिंडदान करने के लिए देश के कोने-कोने से लोग आते हैं।
ऐसी मान्यता है कि बिहार में गया जी में पितर शांति मिलती है किंतु ब्रह्मकपाल में मोक्ष मिलता है। यहां पर पितरों का उद्धार होता है। इस संबंध में धर्म शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि ब्रह्मकपाल में तर्पण करने से पितरों को मोक्ष, मुक्ति मिलती है।यहां पिंडदान व तर्पण करने के बाद श्राद्धकर्म व अन्य जगह पिंडदान की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
पुराणों में उल्लेख मिलता है कि एक बार ब्रह्मा जी अपनी मानस पुत्री संध्या पर काम-मोहित हो गए। उनके इस कृत्य को देखकर उनके मानस पुत्र मरीचि और अन्य ऋषियों ने उन्हें समझाने का प्रयास किया। भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से ब्रह्मा जी के सिर को धड़ से अलग कर दिया। तभी से ब्रह्मा चतुर्मुखी कहलाने लगे, क्योंकि इस घटना से पहले उनके पांच सिर थे।
तभी एक दिव्य घटना हुई। ब्रह्मा जी का वह पांचवां सिर भगवान शिव के हाथ से जा चिपका और भगवान महादेव को ब्रह्म हत्या का दोष लगा। भगवान शिव इस पाप से मुक्ति पान के लिए अनेक तीर्थ स्थानों पर गए, लेकिन पाप से मुक्ति नहीं मिली। अपने धाम कैलास जाते समय उन्होंने बद्रीकाश्रम में अलकापुरी कुबेर नगरी से आ रही मां अलकनंदा में स्नान किया और बद्रीनाथ धाम की ओर बढ़ने लगे।
तभी एक चमत्कार हुआ। ब्रह्माजी का पांचवां सिर उनके हाथ से वहीं नीचे गिर गया। बद्रीनाथ धाम के समीप जिस स्थान पर वह सिर (कपाल) गिरा वह स्थान ब्रह्मकपाल कहलाया और भगवान देवाधिदेवमहादेव को इसी स्थान पर ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली.
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