सही कहते हैं कि शादी जीवन का सबसे बड़ा फैसला है। खासतौर से लड़कियों के लिए, क्योंकि यह शादी ना केवल उनका घर-परिवार, बल्कि पूरा जीवन ही बदलकर रख देती है। खैर बदलाव तो लड़के के जीवन में भी आते हैं, लेकिन उसके लिए उसके परिवार में एक नया सदस्य जुड़ा है, यह बड़ा बदलाव होता है।
शादी-ब्याह के मामले में हम हिंदुस्तानी काफी प्रसिद्ध हैं। शादी के लिए वर-वधू ढूंढ़ने से लेकर शादी करना और विवाह के बाद के रीति-रिवाज सभी काफी दिलचस्प होते हैं। हमारे यहां कहा जाता है कि शादी दो जिंदगियों को ही नहीं, दो परिवारों को भी जोड़ता है। इसलिए जब शादी असफल होती है तो परिवारों पर भी इसका बुरा प्रभाव दिखाई देता है।
यहां इस बात को उठाने के पीछे हमारा एक ही मकसद है और वह एक सवाल में छिपा है, “क्या महिलाएं एक से अधिक शादियां कर सकती हैं”? आज के मॉडर्न जमाने में यदि शादी असफल रहे, तलाक हो जाए तो कुछ समय के बाद पति और पत्नी फिर से अपना नया घर बसा लेते हैं।
आजकल लड़कियों को भी दूसरी शादी का पूरा मौका दिया जाता है, लेकिन फिर भी लड़कों की तुलना में लड़कियों को दोबारा विवाह करने की फैसला लेते हुए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। जिसका सबसे बड़ा कारण है हमारा समाज, इसके डर से ही वे जल्द फैसला नहीं ले पातीं।
लेकिन क्या हमारा धर्म, हिन्दू शास्त्र महिलाओं को एक से अधिक विवाह करने की अनुमति प्रदान करते हैं? क्या महिलाएं एक ही समय में एक से अधिक पतियों के साथ रह सकती हैं? इन्हीं प्रश्नों का जवाब ढूंढ़ते हुए कुछ तथ्य मिले, जो यहां प्रस्तुत करने जा रही हूं…
स्मृतियों के अनुसार, एक महिला एक से अधिक विवाह नहीं कर सकती। जिसके पीछे कारण केवल ‘कन्यादान’ से जुड़ा है।
दरअसल शास्त्रों के अनुसार माता-पिता केवल एक ही बार अपनी कन्या को दान कर सकते हैं। दुनिया के इस सबसे बड़े दान को करने के लिए उन्हें एक ही अवसर प्रदान किया जाता है। एक ही कन्या का एक से अधिक कन्यादान करना सही नहीं माना जाता।
किंतु दूसरी ओर पुरुषों की बात करें तो? क्या वे एक से अधिक विवाह करने की स्वतंत्रता रखते हैं? हिन्दू शास्त्रों में पुरुषों को एक से अधिक विवाह करने की अनुमति दी तो गई है, लेकिन उस पर भी कुछ शर्तें लागू हैं।
पुरुष केवल धार्मिक उद्देश्यों से ही ऐसा कर सकते हैं? यदि कोई धार्मिक कर्म-कांड, पूजा करने के लिए पत्नी उपलब्ध नहीं है या फिर उनका स्वर्गवास हो गया है तो पति दूसरा विवाह कर सकता है। क्योंकि पत्नी के बिना ऐसे धार्मिक कर्म अधूरे होते हैं।
श्रीराम के सामने भी ऐसी ही एक घड़ी आई थी, जब माता सीता महल छोड़ जा चुकी थीं और उन्हें अश्वमेघ यज्ञ करने के लिए पत्नी की आवश्यकता थी। तब उन्हें पुन: विवाह करने के लिए कहा गया था, किंतु उन्होंने स्वर्ण की सीता बनाकर उसे अपने साथ बिठा लिया और यज्ञ पूर्ण किया।
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