किसी भी व्यक्ति के परलोक गमन पर अंतिम संस्कार की प्रथा निभाई जाती हैं। हर धर्म में अंतिम संस्कार की प्रथा अपने अनुरूप संपन्न की जाती हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि किन्नरों के अंतिम संस्कार की प्रथा अपनेआप में अनोखी होती हैं और जश्न के साथ मनाई जाती हैं। तो आइये जानते हैं किस तरह की जाती हैं किन्नरों के अंतिम संस्कार की प्रथा को संपन्न।
यूं करते हैं आत्मा को आजाद
किन्नर समाज की पूरी दुनिया ही अलग होती है। उनके रहन-सहन से लेकर अंतिम संस्कार तक सबकुछ अलग ही होता है। यही वजह है कि जब किन्नर समाज में किसी की मृत्यु होती है तो सबसे पहले उसकी आत्मा का आजाद करने की प्रक्रिया की जाती है। इसके लिए दिवंगत के शव को सफेद कपड़े में लपेट दिया जाता है। साथ ही ख्याल रखा जाता है कि शव पर कुछ भी बंधा हुआ न हो। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि दिवंगत की आत्मा आजाद हो सके।
मौत पर मनाते हैं जश्न करते हैं दान
किन्नर समाज में किसी की मौत होने पर जश्न मनाने का रिवाज है। कहा जाता है कि यह किन्नर रूपी नर्क जीवन से मुक्ति मिलने के लिए किया जाता है। सभी किन्नर शव के पास खड़े होकर उसकी मुक्ति के लिए अपने आराध्य देव अरावन को धन्यवाद देते हैं। साथ ही प्रार्थना करते हैं कि दोबारा उसे किन्नर रूप में जन्म न दें। इसके अलावा दान-पुण्य किया जाता है। ताकि पुण्य प्रताप से भी दिवंगत किन्नर को दोबारा इस योनि में जन्म न मिले।
शव को पीटते हैं चप्पल-जूतों से
जानकारी के मुताबिक किन्नर समुदाय शव यात्रा निकालने से पहले शव को जूते-चप्पलों से पीटते हैं। इसके अलावा किन्नरों की शवयात्रा कभी भी दिन के समय नहीं निकाली जाती। यह हमेशा रात को ही निकालते हैं। इसके पीछे यह कहा जाता है कि अगर किसी गैर किन्नर ने किन्नर का शव देख लिया तो वह दिवंगत किन्नर दूसरे जन्म में फिर से किन्नर ही बनेगा। उसकी मुक्ति के लिए ही रात में शवयात्रा निकाली जाती है।
किन्नर ऐसे करते हैं अंतिम संस्कार
किन्नरों का अंतिम संस्कार काफी गुपचुप तरीके से किया जाता है। कहा जाता है कि किन्नरों को भी जलाया नहीं जाता। इनके समुदाय में भी शवों को दफनाने की परंपरा चली आ रही है। अंतिम संस्कार के बाद एक हफ्ते तक समूचा किन्नर समुदाय भूखा ही रहता है।
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