December 19, 2024

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900 साल पुराना ये मंदिर अपने सौंदर्य के चलते बना अजूबा !

900 साल पुराना ये मंदिर अपने सौंदर्य के चलते बना अजूबा !

इस दुनिया के अजूबों के बारे में तो आप सभी जानते हैं जो अपनी बेजोड़ संरचना और सुंदरता के लिए जाने जाते हैं। लेकिन आज इस कड़ी में हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो अपनी सुंदरता और संरचना में किसी अजूबे से कम नहीं हैं। शिल्प सौंदर्य का बेजोड़ खजाना यह मंदिर 900 साल से भी ज्यादा पुराना बताया जाता है। हम बात कर रहे हैं दिलवाड़ा जैन मंदिर के बारे में। असल में यह पांच मंदिरों का एक समूह है, जो राजस्थान के सिरोही जिले के माउंट आबू नगर में स्थित है। इन मंदिरों का निर्माण 11वीं शताब्दी से लेकर 16वीं शताब्दी के बीच हुआ था। सभी मंदिर जैन धर्म के तीर्थंकरों को समर्पित हैं।

900 साल पुराना ये मंदिर अपने सौंदर्य के चलते बना अजूबा !

दिलवाड़ा के मंदिरों में सबसे प्राचीन ‘विमल वासाही मंदिर’ है, जिसे 1031 ईस्वी में बनाया गया था। यह मंदिर जैन धर्म के पहले तीर्थंकर भगवान आदिनाथ को समर्पित है। सफेद संगमरमर से तराश कर बनाए गए इस मंदिर का निर्माण गुजरात के चालुक्य राजवंश के राजा भीम प्रथम के मंत्री विमल शाह ने करवाया था। कहते हैं कि इस मंदिर में भगवान आदिनाथ की मूर्ति की आंखें असली हीरे की बनी हैं और उनके गले में बहुमूल्य रत्नों का हार है।

पांच मंदिरों के समूह में यहां जो दूसरा सबसे लोकप्रिय और भव्य मंदिर है, उसे ‘लूना वसाही मंदिर’ के नाम से जाना जाता है। यह जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर भगवान नेमीनाथ को समर्पित है। इसका निर्माण 1230 ईस्वी में दो भाइयों वास्तुपाल और तेजपाल ने करवाया था, जो गुजरात के वाहेला के शासक थे। इस मंदिर की विशेषता ये है कि इसके मुख्य हॉल में 360 तीर्थंकरों की छोटी-छोटी मूर्तियां हैं। इसके अलावा यहां एक हाथीकक्ष भी है, जिसमें संगमरमर से बे 10 खूबसूरत हाथी मौजूद हैं।

900 साल पुराना ये मंदिर अपने सौंदर्य के चलते बना अजूबा !

‘विमल वासाही मंदिर’ और ‘लूना वसाही मंदिर’ के अलावा यहां पित्तलहार मंदिर, श्री पार्श्वनाथ मंदिर और श्री महावीर स्वामी मंदिर हैं। सबसे आखिर में महावीर स्वामी मंदिर का निर्माण 1582 ईस्वी में हुआ था। यह भगवान महावीर को समर्पित है। वैसे तो बाकी मंदिरों की अपेक्षा यह सबसे छोटा है, लेकिन इसकी दीवारों पर नक्काशी सबसे खूबसूरत और अद्भुत है। इन मंदिरों को राजस्थान के सर्वाधिक लोकप्रिय आकर्षणों में से एक माना जाता है।

ऐसा माना जाता है कि मंदिर बनाने वाले जो कारीगर संगमरमर को तराशने का काम पूरा करते थे उन्हें इकट्ठा किए गए संगमरमर के धूल के अनुसार भुगतान किया जाता था। इस वजह से कारीगर मन लगाकर काम करते थे और शानदार नक्काशी बनाते थे।