कई देश ऐसे हैं जहां यातायात के लिए नहरों का इस्तेमाल किया जाता हैं जिससे एक शहर से दूसरे शहर में आसानी से जाया जा सकता हैं। आमतौर पर नहर ज्यादा लंबे नहीं होते हैं। लेकिन आज हम आपको एक ऐसी अनोखी नहर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे पार करने में बड़े जहाजों को भी घंटों लग जाते हैं। हम बात कर रहे हैं मध्य अमेरिका के पनामा में स्थित पनामा नहर के बारे में। इस नहर के बनने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है, जिसके बारे में जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे।
यह नहर प्रशांत महासागर और (कैरेबियन सागर होकर) अटलांटिक महासागर को जोड़ती है। 82 किलोमीटर लंबी यह नहर अंतरराष्ट्रीय व्यापार के प्रमुख जलमार्गों में से एक है, जहां से हर साल 15 हजार से भी अधिक छोटे-बड़े जहाज गुजरते हैं। हालांकि जब यह नहर बनी थी, तब यहां से करीब 1000 जहाज गुजरा करते थे।
आपको जानकर हैरानी होगी कि अमेरिका के पूर्वी और पश्चिमी तटों के बीच की दूरी इस नहर से होकर गुजरने पर करीब 12,875 किलोमीटर घट जाती है, नहीं तो जहाजों को लंबा चक्कर लगाना पड़ता, जिसमें करीब दो हफ्ते लग जाते। लेकिन अब जहाज इस दूरी को 10-12 घंटे में ही पूरी कर लेते हैं।
पनामा नहर मीठे पानी की झील ‘गाटुन’ से होकर गुजरती है, जिसका जलस्तर समुद्रतल से 26 मीटर ऊपर है। ऐसे में यहां जहाजों के प्रवेश के लिए तीन लॉक्स बनाए गए हैं, जिनमें जहाजों को पहले प्रवेश कराया जाता है और फिर पानी भरकर उन्हें ऊपर उठाया जाता है, ताकि वो इस झील से होकर गुजर सकें। यह दुनिया का अकेला ऐसा जलमार्ग है, जहां किसी भी जहाज का कप्तान अपने जहाज का नियंत्रण पूरी तरह से पनामा के स्थानीय विशेषज्ञ कप्तान को सौंप देता है।
वैसे तो पनामा नहर बनाने के बारे में 15वीं सदी में ही सोच लिया गया था, लेकिन शुरुआती दिक्कतों की वजह से यह नहीं बन पाया। फिर फ्रांस ने साल 1881 में इसे बनाने का काम शुरू किया, लेकिन रहने की जगह नहीं होने और साफ-सफाई की कमी के चलते यहां काम कर रहे मजदूरों को बीमारियां होने लगीं और इंजीनियरिंग की परेशानियों (मसलन मशीनें खराब होना) की वजह से भी फ्रांस ने बीच में ही काम बंद कर दिया। कहते हैं कि फ्रांस ने लगभग नौ साल तक इसे बनाने का काम किया, लेकिन इस दौरान यहां करीब 20 हजार लोगों की मौत हो गई।
वर्ष 1904 में अमेरिका ने इस नहर को बनाने का काम शुरू किया और आखिरकार 1914 में उसने नहर का काम पूरा कर दिया। कहा जाता है कि अमेरिका ने इस नहर को बनाने का काम तय समय से दो साल पहले ही पूरा कर लिया था। इस नहर को बनाने का काम दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे कठिन इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट माना जाता है।
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