दक्षिण भारत में ऐसी कई पौराणकि कथाएं प्रचलित हैं, जो किसी भी रहस्य से कम नहीं। ऐसी ही एक कहानी है बालयोगी ‘संबंदर’ की। यह कहानी सदियों पुरानी है।
It Was Like The Secret Marriage Of Sambandar in Hindi :-
बात उन दिनों की है जब संबंदर की उम्र 6 वर्ष की थी। संबंदर लोगों में अध्यात्म की ज्योति प्रज्वलित करना चाहते थे। उम्र में छोटे संबंदर ने अपने ज्ञान को गीतों के द्वारा लोगों तक पहुंचाया। वह एक राजवंश परिवार से थे। दिन-वर्ष बीतते गए। और वह जब युवा हुए तब उनके परिवार ने उनके विवाह करने को कहा।
तब संबंदर ने स्वयं ही एक कन्या को चुना। वह कन्या भी राज परिवार से संबंध रखती थी। लेकिन समस्या ये थी की संबंदर और उस कन्या के राजपरिवार में मधुर संबंध नहीं थे। संबंदर और वह कन्या में एक समानता यह थी दोनों ही आध्यात्मिक व्यक्ति थे।
बचपन में उस कन्या के परिजन ने अध्यात्म की तरफ रुचि होने के चलते, उस कन्या को वाराणसी पढ़ने भेजा था। वह कन्या 14 वर्ष तक गुरुजी के आश्रम में रही। समय के साथ उसकी शिक्षा-दीक्षा पूर्ण हुई तो गुरुजी ने उसे संबंदर के पास भेजा। इसी बीच दोनों राजपरिवारों के बीच मधुर संबंध स्थापित हुए और दोनों वर-वधु एक ही मार्ग यानी अध्यात्म के मार्ग पर चल रहे थे।
तब उनका विवाह होना निश्चित हो गया। विवाह तय हुआ। इस विवाह में संबंदर के करीब हजारों अनुयायी मौजूद थे। संबंदर चाहते थे कि विवाह में उनके सभी अनुयायी मौजूद हों, और उनकी इच्छा के फलस्वरूप ऐसा ही हुआ। उन्होंने उस परिसर में ऐसा माहौल बना दिया कि विवाह में आए सभी अनुयायियों कुछ ही घंटों में अतिथि न रह कर, आध्यात्मिक जिज्ञासु बन गए।
संबंदर ने अपना ज्ञान उन सभी को दिया। वह बोलते थे तो उनके अनुयायी मोहित हो जाते थे। धीरे-धीरे सभी अनुयायियों ने देह का त्याग कर दिया। एक साथ तीन हज़ार से अधिक व्यक्तियों ने अपनी पूरी चेतना के साथ शरीर त्याग दिए।
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