हिन्दू सनातन धर्म में गंगा को मोक्षदायिनी, पतितपावनी, देव नदी आदि कई नामो से जाना जाता है. हर हिन्दू यही चाहता है की मृत्यु के बाद उसकी अस्थियों को गंगा नदी में प्रवाहित किया जाये.
ये माना जाता है कि ऐसा करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है. ऐसा भी कहते है जिस व्यक्ति की मृत्यु गंगा नदी के निकट होती है वो व्यक्ति पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति पा जाता है.
क्या कभी आपने सोचा है कि इतने वर्षो से गंगा में प्रवाहित की जा रही अस्थियाँ जाती कहाँ है और कैसे गंगा का जल इतना निर्मल और पावन बना हुआ है.
हमने आपकी जानकारी के लिए इस रहस्य से पर्दा उठाने के लिए एक तफ्तीश की और जो सामने आया है वो हम आपके सामने रख रहे है.
1) पौराणिक कारण
कहते है एक बार देवी गंगा श्री हरि विष्णु से मिलने बैकुंठ धाम पहुंची. वहां पहुँच कर उन्होंने श्री हरि विष्णु जी से पूछा कि हे प्रभु मेरे जल में स्नान मात्र से ही मनुष्य सभी पापो से मुक्त हो जाता है परन्तु मैं कब तक सभी मनुष्यों के पापो का बोझ उठाऊंगी तब श्री हरि विष्णु बोले कि हे देवी जब साधू संत और वैष्णव जन आपके जल में स्नान करेगे तो आप पर पड़ने वाले पापो का बोझ स्वतः ही कम हो जायेगा. तभी से ये मान्यता है कि जो भी अस्थिया गंगा नदी में बहाई जाती है वो बैकुंठ धाम श्री हरि विष्णु के चरणों में चली जाती है.
2) वैज्ञानिक कारण
वैज्ञानिको का मानना है की गंगाजल में पारा विद्यमान है और मनुष्य की अस्थियाँ कैल्शियम और गंधक के अवयवो से मिलकर बनी होती है. पारा गंधक के साथ मिलकर पारद का निर्माण करता है और कैल्शियम पानी की सफाई का काम करता है. पारद को भगवान शिव का और गंधक को शक्ति का प्रतीक मन जाता है. अर्थात गंगा में विसर्जित होने वाली अस्थियाँ शिव और शक्ति में विलीन हो जाती है.
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