Sawan Mangala Gauri Vrat: आज सावन महीने का पहला मंगलवार है। दरअसल सावन (श्रावण) के सोमवार के अगले दिन यानी मंगलवार को मंगला गौरी व्रत मनाया जाता है। इस व्रत को सुहागिन महिलाओं के साथ-साथ वो लोग भी मनाते हैं जिनकी शादी में परेशानी आ रही है। मान्यता के मुताबिक इस व्रत को करने से सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। वहीं जिनकी शादी में किसी भी तरह की परेशानी आती है तो वो दूर हो जाती है।
प्रेमी-प्रेमिकाओं के लिए यह बेहद खास दिन होता है। यह व्रत रखने से प्रेमियों में आपसी प्यार बढ़ जाता है। इतना ही नहीं इस व्रत के प्रभाव से प्रेमी विवाह बंधन में बंध सकते हैं, उनकी शादी में आनेवाली रुकावटें खत्म हो सकती हैं।
कुंवारी कन्याएं या सुहागन स्त्री यह व्रत करती हैं। विवाह की बाधा दूर करने, वैवाहिक जीवन में खुशहाली, पुत्र की प्राप्ति व सौभाग्य के लिए यह व्रत श्रेष्ठ है। यह पांच सालों तक भी किया जाता है। इस दिन मां पार्वती की पूजा करते हुए उनका ध्यान करें और संभव हो तो दिन भर अन्न ग्रहण नहीं करें।
सावन (श्रावण) महीने में जिस प्रकार प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है, श्रावण सोमवार के व्रत रखे जाते हैं, उसी प्रकार श्रावण माह के प्रत्येक मंगलवार को मंगला गौरी व्रत किया जाता है। यह व्रत विशेषकर उन कन्याओं को करना चाहिए जिनका विवाह किसी कारण से नहीं हो पा रहा है। यह व्रत उन सुहागिन स्त्रियों को भी करना चाहिए जिनके विवाह में किसी प्रकार की परेशानी चल रही है। परिवार की सुख-समृद्धि की कामना से यह व्रत दंपती को जोड़े से करना चाहिए।
जिस तरह भोलेनाथ को सावन के सोमवार अत्यंत प्रिय हैं। ठीक उसी तरह देवी पार्वती को इस महीने के मंगलवार अत्यंत प्रिय हैं। जी हां इस दौरान सोमवार के दिन भोलेनाथ की पूजा से जहां मनवांछित वर, धन और निरोगी काया का फल मिलता है। वहीं मंगलवार के दिन मंगला गौरी व्रत का पूजन करने से माता पार्वती की कृपा से अखंड सौभाग्य मिलता है।
सोमवार के दूसरे दिन यानी मंगलवार को मंगला माता की पूजा करने और कथा सुनने से मनचाहा फल मिलता है। मान्यता है कि सावन महीने के इस मंगलवार को व्रत रखने से व्यक्ति को सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस दिन पति की लंबी उम्र के लिए महिलाएं व्रत रखती हैं।
मंगला गौरी व्रत कथा
एक नगर में एक व्यापारी अपनी पत्नी के साथ सुखी से जीवन जी रहा था। उसे धन दौलत की कोई कमी नहीं थी। लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। इसलिए सारी सुख सुविधाएं होते हुए थी दोनों पति पत्नी खुश नहीं रहते थे। खूब पूर्जा अर्चना करने के बाद उन्हें पुत्र का वरदान प्राप्त हुआ। लेकिन ज्योतिषियों ने कहा कि वह अल्पायु है और 17 साल का होते ही उसकी मृत्यु हो जाएगी।
इस बात को जानने के बाद पति पत्नी और भी दुखी हो गए। लेकिन उन्होंने इसे ही अपना और पुत्र का भाग्य मान लिया। कुछ समय बाद उन्होंने अपने बेटे की शादी एक सुंदर और संस्करी कन्या से कर दी। वह कन्या सदैव मंगला गौरी का व्रत करती और मां पार्वती की विधिवत पूजन करती थी। इस व्रत के प्रभाव से उत्पन्न कन्या को अखंड सौभाग्यवती होने का आशिर्वाद प्राप्त था। इसके परिणाम स्वरुप सेठ के पुत्र की मृत्यु टल गई और उसे दीर्घायु प्राप्त हुई।
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