भारत देश को त्यौंहारों का देश कहा जाता हैं जिसमे हर रोज कोई ना कोई त्यौंहार तो आता ही है। अब आने वाले दिनों में नवरात्र का पावन पर्व आने वाला हैं जो पूरे भारतदेश में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता हैं। नवरात्र के इस पावन पर्व में पूरे नौ दिनों तक मातारानी के नौ रूपों की पूजा की जाती हैं और आशीर्वाद की कामना की जाती हैं। नवरात्र का पांचवा दिन मां स्कंदमाता को समर्पित होता हैं और इस दिन मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है। इसलिए आज हम आपके लिए मां स्कंदमाता से जुड़ी व्रत कथा (vrat katha) लेकर आए हैं। तो आइये जानते हैं इसके बारे में।
दुर्गा पूजा के पांचवे दिन देवताओं के सेनापति कुमार कार्तिकेय(kartikey) की माता की पूजा होती है। कुमार कार्तिकेय को ग्रंथों में सनत-कुमार, स्कन्द कुमार के नाम से पुकारा गया है। माता इस रूप में पूर्णत: ममता लुटाती हुई नज़र आती हैं। माता का पांचवा रूप शुभ्र अर्थात श्वेत है। जब अत्याचारी दानवों का अत्याचार बढ़ता है तब माता संत जनों की रक्षा के लिए सिंह पर सवार होकर दुष्टों का अंत करती हैं। देवी स्कन्दमाता की चार भुजाएं हैं, माता अपने दो हाथों में कमल का फूल धारण करती हैं और एक भुजा में भगवान स्कन्द या कुमार कार्तिकेय को सहारा देकर अपनी गोद में लिये बैठी हैं। मां का चौथा हाथ भक्तो को आशीर्वाद देने की मुद्रा मे है।
देवी स्कन्द माता ही हिमालय की पुत्री पार्वती(parwati) हैं इन्हें ही माहेश्वरी और गौरी के नाम से जाना जाता है। यह पर्वत राज की पुत्री होने से पार्वती कहलाती हैं, महादेव की वामिनी यानी पत्नी होने से माहेश्वरी कहलाती हैं और अपने गौर वर्ण के कारण देवी गौरी के नाम से पूजी जाती हैं। माता को अपने पुत्र से अधिक प्रेम है अत: मां को अपने पुत्र के नाम के साथ संबोधित किया जाना अच्छा लगता है। जो भक्त माता के इस स्वरूप की पूजा करते है मां उस पर अपने पुत्र के समान स्नेह लुटाती हैं।
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