झांसी से करीब 20 किमी दूर एक छोटा-सा गांव है ओरछा। बुंदेलखंड के इतिहास को समेटे यह गांव कई इतिहासकारों के लिए आज भी चर्चा का विषय है। यहां पर भगवान श्रीराम का एक मंदिर स्थित है, जो राम राजा मंदिर के नाम से जाना जाता है। मंदिर के बारे में बहुत-सी कहानियां मशहूर हैं। श्रीराम को राजा की तरह पूजा जाता है। मान्यता है कि राम ही यहां के राजा हैं। लोगों का मानना है कि राम राजा को ओरछा इतना पसंद है कि वह रात में अयोध्या में रुकते हैं और सुबह होते ही बालरूप में ओरछा आ जाते हैं।
मंदिर में राम राजा के अलावा सीता, लक्ष्मण और हनुमान की मूर्तियां भी स्थापित हैं। यहां का विशेष आकर्षण राम बारात है, जो दिसंबर महीने में होती है। राम राजा मंदिर के बार में कहा जाता है कि ओरछा के राजा मधुकर राधा-कृष्ण के परम भक्त थे, लेकिन उनकी पत्नी महारानी कमलापति गणेश कुंवरी भगवान राम की भक्त थीं। एक दिन महारानी भगवान राम की भक्ति में लीन थीं और महाराज उनका इंतजार कर रहे थे। काफी देर बाद भी उनका ध्यान राजा पर नहीं गया। इस पर महाराजा ने रानी से मजाक में कहा, ‘यदि तुम्हारे राम हमारे श्रीकृष्ण से ज्यादा महान हैं तो उन्हें ओरछा क्यों नहीं ले आती हो।’ यह बात रानी के दिल पर लग गई और उन्होंने भगवान राम को ओरछा लाने की ठान ली।
राम को लाने के लिए अयोध्या गईं महारानी
महारानी कमलापति ने सबसे पहले ओरछा के राज कारीगरों द्वारा एक चतुर्भुज मंदिर का निर्माण करवाना शुरू कर दिया। इसके बाद वे भगवान राम को लाने के लिए सैकड़ों कोस दूर अयोध्या पैदल ही चल दीं। अयोध्या पहुंचकर उन्होंने सरयू नदी के लक्ष्मण घाट पर तपस्या करनी शुरू कर दी। जब तपस्या करते हुए उन्हें काफी समय बीत गया तो उन्होंने नदी में ही प्राण त्यागने का फैसला कर लिया।
महारानी के सामने रखी तीन शर्तें
इसी समय भगवान राम बालरूप धारण कर महारानी के गोद में आकर बैठ गए। तब उन्होंने राम को अपने साथ ओरछा चलने का आग्रह किया, लेकिन राम ने उनके सामने तीन शर्तें रख दीं। उन्होंने कहा कि ‘मैं जहां बैठ जाऊंगा, वहां विराजमान हो जाऊंगा।’ उनकी दूसरी शर्त थी, ‘मुझे वहां का राजा माना जाएगा यानि, तुम्हारा पति ओरछा के राजा नहीं, बल्कि मैं होऊंगा।’ तीसरी शर्त थी, ‘ओरछा में पुण्य नक्षत्र पर ही आएंगे।’ रानी ने उनकी तीनों शर्तें मान ली और राम को बालरूप में यहां ले आईं।
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