राजधानी पटना से लगभग 110 किलोमीटर दूर स्थित है ऐतिहासिक स्थल केसरिया। जहां पर एक वृहत बौद्धकालीन स्तूप है। जो शताब्दियों से मिट्टी से ढका था। इस स्तूप के संबंध में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा-वृत्तांत में उल्लेख किया था। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार बुद्ध ने वैशाली के चापाल चैत्य में तीन माह के अंदर ही अपनी मृत्यु (महापरिनिर्वाण) होने की भविष्यवाणी की थी।
जिसके बाद अपना अंतिम उपदेश देने के बाद वे कुशीनगर को रवाना हुए, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली। यात्रा प्रारंभ करने से पहले अपने पीछे आने वाले वैशालीवासियों को रोकने के उद्देश्य से उन्होंने केसरिया में उन लोगों को अपना भिक्षा-पात्र, स्मृति-चिन्ह के रूप में भेंट किया और लौटने पर राजी किया। इसी घटना की याद में सम्राट अशोक ने इस स्थान पर वृहत स्तूप का निर्माण कराया था।
केसरिया का बौद्ध स्तूप भारत का एक महत्वपूर्ण पर्यटक स्थल है। इसके साथ हीं यह दुनिया भर के बौद्ध धर्मावलंबियों के आस्था का प्रमुख केन्द्र भी है। यहां चीन, जपान, म्यंमार, थाईलैंड, इंडोनेशिया, श्रीलंका एवं नेपाल समेत दुनिया अन्य देशों के पर्यटक भारी संख्या में आते हैं।
वर्ष 2001 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण पटना अंचल के पुरातत्व अधीक्षक मो. के के ने केसरिया स्तूप को संसार का सबसे ऊंचा बौद्ध स्तूप घोषित किया था। उसी समय से यहां भारी संख्या में विदेशी पर्यटक आते रहते हैं।
बुद्ध ने यहां लिच्छवियों को दे दिया था अपना भिक्षापात्र
गंडक नदी के किनारे अवस्थित केसरिया एक महत्वपूर्ण बौद्ध स्थल है। इसका इतिहास काफी पुराना व समृद्ध है। बौद्ध आख्यानों के मुताबिक महापरिनिर्वाण के वक्त वैशाली से कुशीनगर जाते गौतम बुद्ध ने एक रात केसरिया में बिताई थी।
कहा जाता है कि यहां उन्होंने अपना भिक्षा-पात्र लिच्छवियों को दे दिया था। आख्यानों के मुताबिक जब भगवान बुद्ध यहां से जाने लगे तो लिच्छवियों ने उन्हें रोकने का काफी प्रयास किया। लिच्छवी नहीं माने तो भगवान बुद्ध ने नदी में कृत्रिम बाढ़ उत्पन्न कर उनका मार्ग अवरूद्ध कर दिया था। इस स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक ने कराया था। कालांतर में यह ऐतिहासिक परिसर विस्मृति के गर्त में समा गया था।
असुरक्षित है पूरा परिसर
इतना ऐतिसासिक महत्व और सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं। यह अविश्वसनीय परंतु सच है। बिहार पुलिस के चार जवान यहां दिन में ड्यूटी करते हैं पर रात में सुरक्षा का कोई प्रबंध यहां नहीं है। स्तूप की सीढिय़ों से पहले लोग शिखर तक जाते थे जिसे सुरक्षा कारणों से रोक दिया गया लेकिन इसके अतिरिक्त कोई और ऐसा उपाय नहीं हुआ है जिससे कि लगे कि इस ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण व संवद्र्धन के प्रयास हो रहे हों।
भूकंप जोन 5 में चिह्नित है पूरा इलाका
इस इमारत को सबसे अधिक खतरा बारिश और भूकंप से है। यह इलाका भूकंप के लिए चिह्नित जोन-5 का हिस्सा है जहां भूकंप की तीव्रता और खतरा सर्वाधिक माना गया है। पिछले साल भूकंप में इस ऐतिहासिक स्तूप की सबसे ऊंचाई पर लगी ईंटों के खिसकने की चर्चा थी लेकिन पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इसका खंडन करते हुए पूरे परिसर को सुरक्षित बताया था।साथ ही कहा था कि भूकंप से स्तूप की ऊंचाई को कोई फर्क नहीं पड़ा है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि बारिश के दौरान जिधर खुदाई नहीं हुई है उधर की ईंटें अक्सर खिसकती रहती हैं। इन दिनों खुदाई का काम बंद होने से भी यह स्थल उपेक्षित सा हो गया है।
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