प्रकृति के कुछ नियम हैं जिन्हें बदलना उसके साथ खिलवाड़ करने जैसा होता हैं। प्रकृति का ही एक ऐसा नियम हैं की गर्भधारण सिर्फ महिलाओं द्वारा ही किया जा सकता हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं की प्रभु श्री राम के पूर्वज राजा युवनाश्व गर्भधारण कर पुत्र को जन्म दे चुके हैं। जी हाँ, इसका वृत्तांत रामायण के बालकाण्ड में गुरु वशिष्ठ द्वारा भगवान राम के कुल, रघुवंश के वर्णन के दौरान मिलता हैं। ब्रह्माजी के पुत्र मरिचि से कश्यप का जन्म हुआ। कश्यप के पुत्र थे विवस्वान। विवस्वान के पुत्र थे वैवस्त मनु, जिनके दस पुत्रों में से एक का नाम इक्ष्वांकु था। राजा इक्ष्वांकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और उन्होंने ही इक्ष्वांकु वंश को स्थापित किया।
इसी वंश में राजा युवनाश्व का जन्म हुआ लेकिन उनका कोई पुत्र नहीं था। वंश की उन्नति और पुत्र प्राप्ति की कामना लिए उन्होंने अपना सारा राज-पाठ त्याग कर वन में जाकर तपस्या करने का निश्चय किया। वन में अपने निवास के दौरान उनकी मुलाकात महर्षि भृगु के वंशज च्यवन ऋषि से हुई। च्यवन ऋषि ने राजा युवनाश्व के लिए इष्टि यज्ञ करना आरंभ किया ताकि राजा की संतान जन्म ले। यज्ञ के बाद च्यवन ऋषि ने एक मटके में अभिमंत्रित जल रखा जिसका सेवन राजा की पत्नी को करना था ताकि वह गर्भधारण कर पाए।
राजा युवनाश्व की संतानोत्पत्ति के उद्देश्य से हुए यज्ञ में कई ऋषि-मुनियों ने भाग लिया और यज्ञ के बाद सभी जन थकान की वजह से गहरी नींद में सो गए। रात्रि के समय जब राजा युवनाश्व की नींद खुली तो उन्हे भयंकर प्यास लगी। युवनाश्व ने पानी के लिए बहुत आवाज लगाई लेकिन थकान की वजह से गहरी नींद में सोने की वजह से किसी ने राजा की आवाज नहीं सुनी। ऐसे में राजा स्वयं उठे और पानी की तलाश करने लगे।
राजा युवनाश्व को वह कलश दिखाई दिया जिसमें अभिमंत्रित जल था। इस बात से बेखबर कि वह जल किस उद्देश्य के लिए है, राजा ने प्यास की वजह से सारा पानी पी लिया। जब इस बात की खबर ऋषि च्यवन को लगी तो उन्होंने राजा से कहा कि उनकी संतान अब उन्हीं के गर्भ से जन्म लेगी। जब संतान के जन्म लेने का सही समय आया तब दैवीय चिकित्सकों, अश्विन कुमारों ने राजा युवनाश्व की कोख को चीरकर बच्चे को बाहर निकाला। बच्चे के जन्म के बाद यह समस्या उत्पन्न हुई कि बच्चा अपनी भूख कैसे मिटाएगा
सभी देवतागण वहां उपस्थित थे, इतने में इंद्र देव ने उनसे कहा कि वह उस बच्चे के लिए मां की कमी पूरी करेंगे। इन्द्र ने अपनी अंगुली शिशु के मुंह में डाली जिसमें से दूध निकल रहा था और कहा “मम धाता” अर्थात मैं इसकी मां हूं। इसी वजह से उस शिशु का नाम ममधाता या मांधाता पड़ा। जैसे ही इंद्र देव ने शिशु को अपनी अंगुली से दूध पिलाना शुरू किया वह शिशु 13 बित्ता बढ़ गया। कहते हैं राजा मांधाता से सूर्य उदय से लेकर सूर्यास्त तक के राज्यों पर धर्मानुकूल शासन किया था।
इतना ही नहीं राजा मांधाता ने सौ अश्वमेघ और सौ राजसूय यज्ञ करके दस योजन लंबे और एक योजन ऊंचे रोहित नामक सोने के मत्स्य बनवाकर ब्राह्मणों को भी दान दिए थे। लम्बे समय तक धर्मानुकूल रहकर शासन करने के बाद राजा मांधाता ने विष्णु के दर्शन करने के लिए वन जाकर तप करने का निर्णय किया और विष्णु के दर्शन कर लेने के बाद वन में ही अपने प्राण त्याग स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया।
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