आप सभी टाइटैनिक जहाज के बारे में तो जानते ही हैं जो एक ग्लेशियर के टकराने की वजह से टूट गया था। लेकिन ऐसे ही कई अनोखे जहाज हैं जिनके डूबने के कारण आज भी रहस्य बने हुए हैं। आज हम आपको एक ऐसे जहाज के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका डूबना तो रहस्य था ही लेकिन डूबने के बाद भी 300 साल तक यह समद्र में ही पड़ा रहा और अब इसे निकाल कर म्यूजियम में बदल दिया गया है। हम बात कर रहे हैं दुनिया के सबसे हाई-टेक जंगी जहाज वासा की।
1628 में स्टॉकहोम की खाड़ी से जब इसका सफर शुरू हो रहा था तब वासा दुनिया का सबसे हाई-टेक जंगी जहाज था। 68 मीटर लंबे और 64 तोपों वाले इस जहाज को स्वीडन के राजा गुस्ताव द्वितीय एडोल्फ ने बनवाया था। गुस्ताव द्वितीय एडोल्फ अपनी नौसेना के लिए ज्यादा से ज्यादा जंगी जहाज बनाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने इस विशाल जहाज को बनाने का आदेश दिया था। यह संसार के उन शुरुआती युद्धपोतों में से एक था, जिन पर तोपों के दो डेक थे। वासा स्वीडन की नौसेना का अग्रणी युद्धपोत होता, लेकिन इस विशाल और सुसज्जित जहाज का गौरव ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाया। पहले सफर पर सिर्फ 20 मिनट के अंदर यह जहाज डूब गया और उसके 30 सवारों की मौत हो गई।
वासा तीन सौ सालों तक समुद्र की तलहटी में पड़ा रहा, जब तक कि पुरातत्वविदों ने उसे निकाल नहीं लिया। उन्होंने इस जहाज को संरक्षित किया और इसे स्कैंडिनेविया के सबसे लोकप्रिय म्यूजियम में बदल दिया है। वासा के तुरंत डूबने की कहानी नौसेना पोत के वास्तुशिल्प इतिहास का सबसे बड़ा रहस्य है। इसे सबसे बड़ी नाकामियों में भी शुमार किया जाता है।
तूफानी हवाओं के कारण यह जहाज एक तरफ झुक गया था। बदकिस्मती से तोप की नली के लिए बनाए गए सुराख खुले हुए थे। उन सुराखों से पानी आने लगा जिससे जहाज और झुकने लगा और आखिरकार डूब गया। इस जहाज के पहले सफर को देखने के लिए भीड़ इकट्ठा थी। उनकी आंखों के सामने यह जहाज सागर में समा गया। इस नाकामी को राष्ट्रीय तबाही बताया गया।
जहाज डूबने के बाद की जांच में पाया गया कि जहाज असंतुलित था, लेकिन ऐसा होने की वजह क्या थी, यह आज भी बहस का मुद्दा है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि जहाज की डिजाइन गलत थी। दूसरों का मानना है कि जहाज पर लगी तोपों का वजन उचित तरीके से बंटा हुआ नहीं था। वासा को लकड़ी पर विस्तृत नक्काशी करके सजाया गया था। उसकी नक्काशियां स्वीडन के शाही खानदान की कहानियां बताती थीं।
300 साल तक समुद्र की तलहटी में रहने के बाद इसे 1956 में खोजा गया। इसे निकालने में पांच साल लगे। 1961 में जब यह जहाज खाड़ी से बाहर आया तो विशेषज्ञों ने देखा कि जहाज की लकड़ियों को कोई नुकसान नहीं हुआ था। लकड़ी पर की गई नक्काशियों भी सुरक्षित थीं।
यह जहाज अब स्टॉकहोम का वासा म्यूजियम कहलाता है। वहां की डायरेक्टर लीसा मैन्सन कहती हैं, ‘वासा 98 फीसदी ऑरिजिनल है जो कि दुनिया में अद्वितीय है।’ मूल स्वरूप में होने के कारण ही यह 17वीं सदी का सबसे संरक्षित जहाज कहलाता है। उस समय का इतने बड़े आकार का कोई दूसरा जहाज नहीं है जिसे इतने अच्छे से संभालकर रखा गया हो।
वासा के सुरक्षित रहने की एक वजह ये थी कि यह बाल्टिक सागर में डूबा था। बाल्टिक सागर में ठंड और ऑक्सीजन की कमी के कारण यह जहाज बैक्टीरिया और लकड़ी खाने वाले कीडों से बचा रह गया। बाल्टिक सागर के ताजे पानी में लकड़ियों को खाने वाले कीड़े उतने नहीं होते जितने खारे पानी में होते हैं। म्यूजियम ने इस जहाज के डूबने और 300 साल बाद इसे निकालने की एक वीडियो डॉक्यूमेंट्री भी बनवाई है, जिसे यहां आने वाले दर्शकों को दिखाया जाता है। अब कई सालों बाद इस जहाज के दोबारा डूब जाने की आशंका हो रही है। यह जहाज एक तरफ झुकना शुरू हो गया है।
पोत शिल्प के विशेषज्ञ नहीं चाहते कि वासा की त्रासदी का इतिहास फिर से दोहराया जाए, इसलिए जहाज की मरम्मत की जा रही है ताकि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रहे। म्यूजियम की डायरेक्टर लीसा मैन्सन कहती हैं, ‘यदि हम कुछ न करें तब भी यह जहाज साल में एक मिलीमीटर झुक रहा है। हम नहीं चाहते कि आगे भी ऐसा ही होता रहे, क्योंकि ऐसा होने पर एक समय आएगा जब जहाज पूरी तरह पलटकर डूब जाएगा।’
वासा का वास्तु, मस्तूल पतवार और इसकी नक्काशी असाधारण है। इसीलिए पुरातत्वविदों की देखरेख में इसके संरक्षण का काम चल रहा है। लीसा मैन्सन कहती हैं, ‘कई लोग मुझसे पूछते हैं कि यह संग्रहालय इतना सफल कैसे है क्योंकि इसकी बुनियाद एक नाकामी पर टिकी है। मुझे लगता है कि नाकामियां इंसान के क्रमिक विकास के अहम हिस्से हैं। कामयाबी पाने के लिए हमें नाकाम होने का जोखिम उठाने से घबराना नहीं चाहिए।
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