कहा जाता है कि मुगल बादशाह औरंगजेब एक ऐसा शासक था, जो अपने धर्म को लेकर काफी कट्टर माना जाता था. लेकिन वो अपने जीवन में एक बार इतना ज्यादा डर गया कि उसने हार मानकर धार्मिक कट्टरता का त्याग करते हुए हिंदुओं के एक मंदिर को बनाने का आदेश दिया.
आखिर कौन है वो जिसके आगे औरंगजेब न सिर्फ नतमस्तक हुआ था बल्कि उसने अपनी गलती स्वीकार करते हुए हार भी मान ली थी.
आइए जानते हैं इससे जुड़ी हुई एक दिलचस्प कहानी.
चित्रकूट बालाजी मंदिर से जुड़ी कहानी
औरंगजेब ने जहां अपनी धार्मिक कट्टरता को छोड़ते हुए एक भव्य मंदिर बनाने का आदेश दिया था वो जगह है उत्तर प्रदेश का चित्रकूट बालाजी मंदिर –
यही वो जगह है जहां पर मुगल बादशाह औरंगजेब ने बालाजी का एक भव्य मंदिर बनवाया था.
इतना ही नहीं इस चित्रकूट बालाजी मंदिर में भोग की रस्म के लिए स्थायी रुप से धन मिलते रहने का इंतजाम भी किया था, जो आज भी सरकारी सहायता के रुप में बदस्तूर जारी है.
बादशाह औरंगजेब ने आज से करीब 333 साल पहले इस चित्रकूट बालाजी मंदिर में राजभोग और पूजा के लिए आवश्यक धन के लिए 8 गांवो की 330 बीघा जमीन और राजकोष से 1 चांदी का सिक्का हर रोज देने का फरमान जारी किया था. उस फरमान की छायाप्रति आज भी मंदिर में मौजूद है.
भगवान शिव के आगे नतमस्तक हुआ था औरंगजेब
प्रचलित कथा के अनुसार औरंगजेब जब चित्रकूट आया तो उसने अपनी सेना को भगवान शिव के प्राचीन मत्यगयेंद्र मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया था.
जब अगली सुबह उसके सिपाही मंदिर तोड़ने के लिए गए तो अचानक से उनके पेट में दर्द होने लगा और फिर वो बेहोश हो गए.
अपने सिपाहियों की ऐसी हालत देखकर औरंगजेब घबरा गया. बहुत कोशिश करने के बाद भी जब उसके सिपाही ठीक नहीं हो सके तब वहां मौजूद एक शख्स ने उन्हें बाबा बालक दास के पास जाने की सलाह दी और कहा कि इनका ईलाज सिर्फ वही कर सकते हैं.
बाबा के पास जाकर जब बादशाह ने अपने सिपाहियों के जीवन की भीख मांगी, तब बाबा ने तत्काल शिव मंदिर को तोड़ने से रोकने की सलाह दी. जिसके बाद बादशाह ने हार मानकर मंदिर को तोड़ने के आदेश पर रोक लगा दी. उसके ऐसा करने से उसके सिपाही ठीक होने लगे.
बाबा के इस चमत्कार को देखकर बादशाह ने अपने विश्वसनीय सिपहसलाहकार गैरत खां को चित्रकूट में रहकर भव्य मंदिर बनवाने का आदेश दिया, बाद में ये चित्रकूट बालाजी मंदिर के नाम से विख्यात हुआ.
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