महाभारत प्राचीन भारत के दो प्रमुख संस्कृत महाकाव्यों में से एक है| महाभारत में कुरुक्षेत्र के युद्ध का वर्णन किया गया है| यह विश्व का सबसे लम्बा साहित्यिक ग्रन्थ है| महाभारत में उस समय का इतिहास श्लोकों में लिखा हुआ है| महाभारत के रचयता वेदव्यास जी हैं| महाभारत में 100,000 से अधिक श्लोक हैं| महाभारत में पुरुषार्थ का वर्णन भी किया गया है| महाभारत में न केवल युद्ध का वर्णन है वल्कि विषम से विषम परिस्थिति में जीवन को मार्गदर्शन देने वाली बातें भी लिखी गई है| महाभारत में कई पात्र थे जैसे- कौरव, पांडव, कर्ण, कृष्ण, शल्य, शिखंडी, कृपाचार्य आदि| महाभारत के कई किरदार ऐसे है जो हमें ज्ञान की बातें सिखाते हैं|
1. श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता
श्रीकृष्ण और सुदामा की दोस्ती बहुत प्रचलित है| सुदामा एक गरीब ब्राह्मण थे और श्रीकृष्ण द्वारका के राजा किन्तु फिर भी श्रीकृष्ण ने कभी अमीर- गरीब का भेद नहीं किया| सांदीपन मुनि के आश्रम में दोनों ने एक साथ शिक्षा ग्रहण की थी| इनकी दोस्ती इतनी गहरी थी कि जब सुदामा श्रीकृष्ण से मिलने द्वारका आए तब श्रीकृष्ण ने राजा होते हुए भी अपने मित्र के पैर अपने हाथों से धोए थे और उनकी गरीबी को देखते हुए अपना सारा राज पाठ सुदामा को दे दिया| जब श्रीकृष्ण और सुदामा सांदीपन मुनि के आश्रम में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तब आचार्य ने उन्हें जंगल से लकड़ी काट के लाने को कहा और भोजन स्वरुप मुट्ठी भर चने दिए तब भी श्रीकृष्ण ने अपनी शक्ति से सुदामा के लिए और चनों का प्रभंद किया|
2. अर्जुन और गुरु द्रोणाचार्य
अर्जुन महाभारत के मुख्य पात्र थे। महाराज पांडु और रानी कुंती के तीसरे पुत्र थे| द्रोणाचार्य ने अपने शिष्यों के लिए एक परीक्षा का आयोजन किया। उन्होंने अपने सभी शिष्यों को चिड़िया की आँख पर निशाना लगाने के लिये कहा। आचार्य ने प्रत्येक शिष्य से पूछा उन्हें क्या दिख रहा है? उनके सभी शिष्यों ने भिन्न भिन्न उत्तर दिए जब अर्जुन की बारी आई अर्जुन ने कहा उसे सिर्फ चिड़िया की आँख दिखाई दे रही है और सिर्फ अर्जुन ही इस परीक्षा में उत्तीर्ण रहा|
3. एकलव्य और गुरु द्रोणाचार्य
एकलव्य एक गरीब शुद्र परिवार से थे और द्रोणाचार्य से धनुर्विद्या का ज्ञान प्राप्त करना करना चाहते थे, लेकिन उनके शुद्र परिवार से होने के कारण द्रोणाचार्य ने एकलव्य को अपना शिष्य बनाने से इंकार कर दिया था| एकलव्य ने अपनी एकाग्रता का परिणाम तब दिया जब बिना किसी धनुर्विद्या के उन्होंने एक कुत्ते की आवाज़ सुनकर उसका मुँह तीरों से भेद दिया था| एकलव्य की एकाग्रता को देखकर ही द्रोणाचार्य खुश हुए परन्तु अपने प्रिये शिष्य अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाने के लिए गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य से उनके दाहिने हाथ अंगूठा गुरुदक्षिणा के रूप में माँगा तो एकलव्य ने बिना किसी झिझक के अपना अंगूठा आचार्य को दे दिया|
4. अर्जुन और श्रीकृष्ण
अर्जुन और श्रीकृष्ण बहुत अच्छे मित्र थे| श्रीकृष्ण अर्जुन के गुरु भी थे| अर्जुन ने श्रीकृष्ण से गीता का उपदेश ग्रहण किया है| दोस्ती के प्रति वचन बद्ध होकर ही श्रीकृष्ण कुरुक्षेत्र में अर्जुन के सारथी बने|
5. दुर्योधन और कर्ण
गुरुकुल से शिक्षा ग्रहण करने के बाद जब सभी भाई हस्तिनापुर आए तब उन्हें अपनी कला का प्रदर्शन करने लिए उनके लिए एक सभा का आयोजन किया गया था, जिसमे कर्ण अर्जुन के आगे आकर खड़े हो गए और उन्होंने कहा वो अर्जुन से बेहतर हैं, तब दुर्योधन ने भी उनका साथ दिया और उन्हें अपने अंग देश का राजा बना दिया| कर्ण ने भी अपनी दोस्ती के वचन से बद्ध होकर समय आने पर दुर्योधन को अपनी जान तक दे देना का वादा किया|
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