September 21, 2024

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हजार अश्वमेघ यज्ञ का फल प्रदान करती हैं पापांकुशा एकादशी, जानें व्रत विधि

आज आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी है जिसे पापांकुशा एकादशी (Papankusha Ekadashi) के नाम से भी जाना जाता हैं। आज के दिन का ज्योतिष में बड़ा महत्व माना जाता हैं। आज आप भगवान विष्णु की पूजा कर मनोवांछित फल की प्राप्ति कर सकती हैं। पापांकुशा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को यमलोक के दुखों से निजात मिलता हैं और भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की कृपा प्राप्त होती हैं इसलिए आज हम आपके लिए इस दिन किए जाने वाले व्रत की पूर्ण विधि लेकर आए हैं ताकि आप हजार अश्वमेघ और सौ सूर्ययज्ञ करने के समान फल प्रदान करने वाली पापांकुशा एकादशी का लाभ उठा सकें। तो आइये जानते हैं इसकी व्रत विधि (Vrat Vidhi) के बारे में।

पापाकुंशा एकादशी व्रत विधि

इस व्रत का पालन दशमी तिथि के दिन से ही करना चाहिए। दशमी तिथि पर सात धान्य अर्थात गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर की दाल नहीं खानी चाहिए, क्योंकि इन सातों धान्यों की पूजा एकादशी के दिन की जाती है। जहां तक संभव हो दशमी तिथि और एकादशी तिथि दोनों ही दिनों में कम से कम बोलना चाहिए। दशमी तिथि को भोजन में तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए और पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।

एकादशी तिथि पर सुबह उठकर स्नान आदि करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए। संकल्प अपनी शक्ति के अनुसार ही लेना चाहिए यानी एक समय फलाहार का या फिर बिना भोजन का। संकल्प लेने के बाद घट स्थापना की जाती है और उसके ऊपर श्रीविष्णुजी की मूर्ति रखी जाती है। इसके साथ भगवान विष्णु का स्मरण एवं उनकी कथा का श्रवण किया जाता है। इस व्रत को करने वाले को विष्णु के सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए। इस व्रत का समापन एकादशी तिथि में नहीं होता है, बल्कि द्वादशी तिथि की प्रात: में ब्राह्माणों को अन्न का दान और दक्षिणा देने के बाद ही यह व्रत समाप्त होता है।