दिवाली का त्यौंहार आने वाला है जो कि असत्य पर सत्य की जीत को दर्शाता है। इस दिन सभी और दीपों की रोशनी से उजाला फैलता हैं। रामायण में रावण की मृत्यु तक की कहानी तो सभी जानते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि उसके बाद एक मौका ऐसा भी आया था जब सीता माता ने लक्ष्मण जी को निगल लिया था। आज हम आपको उसी किस्से के बारे में बताने जा रहे हैं। एक समय की बात है मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम रावण का वध करके भगवती सीता के साथ अवधपुरी वापस आ गए। अयोध्या को एक दुल्हन की तरह से सजाया गया और उत्सव मनाया गया। उत्सव मनाया जा रहा था तभी सीता जी को यह ख्याल आया की वनवास जाने से पूर्व मां सरयु से वादा किया था कि अगर पुन: अपने पति और देवर के साथ सकुशल अवधपुरी वापस आऊंगी तो आपकी विधिवत रूप से पूजन अर्चन करूंगी।
यह सोचकर सीता जी ने लक्ष्मण को साथ लेकर रात्रि में सरयू नदी के तट पर गई। सरयु की पूजा करने के लिए लक्ष्मण से जल लाने के लिए कहा! लक्ष्मण जी जल लाने के लिए घडा लेकर सरयू नदी में उतर गए। जल भर ही रहे थे कि तभी-सरयू के जल से एक अघासुर नाम का राक्षस निकला जो लक्ष्मण जी को निगलना चाहता था। लेकिन तभी भगवती सीता ने यह दृश्य देखा और लक्ष्मण को बचाने के लिए माता सीता ने अघासुर के निगलने से पहले स्वयं लक्ष्मण को निगल गई।
लक्ष्मण को निगलने के बाद सीता जी का सारा शरीर जल बनकर गल गया (यह दृश्य हनुमानजी देख रहे थे जो अद्रश्य रुप से सीता जी के साथ सरयू तट पर आए थे) उस तन रूपी जल को श्री हनुमान जी घड़े में भरकर भगवान श्री राम के सम्मुख लाए। और सारी घटना कैसे घटी यह बात हनुमान जी ने श्री राम जी से बताई। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी हँसकर बोले “हे मारूति सुत सारे राक्षसों का बध तो मैने कर दिया लेकिन ये राक्षस मेरे हाथों से मरने वाला नही है।” इसे भगवान भोलेनाथ का वरदान प्राप्त है कि जब त्रेतायुग में सीता और लक्ष्मण का तन एक तत्व में बदल जायेगा तब उसी तत्व के द्वारा इस राक्षस का बध होगा। और वह तत्व रूद्रावतारी हनुमान के द्वारा अस्त्र रूप में प्रयुक्त किया जाये।
सो हनुमान इस जल को तत्काल सरयु जल में अपने हाथों से प्रवाहित कर दो। इस जल के सरयु के जल में मिलने से अघासुर का बध हो जायेगा और सीता तथा लक्ष्मण पुन: अपने शरीर को प्राप्त कर सकेंगे। हनुमान जी ने घडे के जल को आदि गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित करके सरयु जल में डाल दिया। घडे का जल ज्यों ही सरयु जल में मिला त्यों ही सरयु के जल में भयंकर ज्वाला जलने लगी उसी ज्वाला में अघासुर जलकर भस्म हो गया। और सरयु माता ने पुन: सीता तथा लक्ष्मण को नव-जीवन प्रदान किया।
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