श्राद्ध पक्ष आरम्भ होने वाला हैं जो कि पिंडदान के लिए जाना जाता हैं। श्राद्ध पक्ष में पितरों को भोग लगाया जाता हैं और पूजा की जाती है। यह प्रथा पुराणों के समय से चली आ रही हैं। श्राद्ध करे से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता हैं और जीवन में खुशियों का आगमन होता हैं। पूर्ण पूजा-विधि के साथ यह क्रिया सम्पूर की जाती हैं। इस पूजा विधि में सबसे पहले अग्नि को भोग लगाया जाता हैं। इसका कारण देवताओं से जुड़ा हैं जिसके बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं। तो आइये जानते हैं इसके बारे में।
सबसे पहले श्राद्ध का उपदेश महर्षि निमि को महातपस्वी अत्रि मुनि द्वारा दिया गया था। इस प्रकार पहले निमि ने श्राद्ध का आरंभ किया और उसके बाद सभी अन्य महर्षि भी श्राद्ध करने लगे। समय जे साथ सभी वर्णों के लोग श्राद्ध में पितरों को अन्न का भोग लगाने लगे। लगातार श्राद्ध का भोजन करने से देवता और पितर पूर्ण तृप्त हो गए।
श्राद्ध का भोजन लगातार करने से पितरों को अजीर्ण (भोजन न पचना) की समस्या होने लग गई। तब वे ब्रह्माजी के पास गए और उनसे इसका समाधान करने की प्रार्थना की। देवताओं की बात सुनकर ब्रह्माजी ने अग्निदेव की ओर इशारा कर कहा की ये ही आपका कल्याण करेंगे। अग्निदेव बोले अब से श्राद्ध में हम लोग साथ ही भोजन किया करेंगे। मेरे साथ रहने से आप लोगों का अजीर्ण दूर हो जाएगा। यह सुनकर देवता व पितर प्रसन्न हुए। इसलिए श्राद्ध में सबसे पहले अग्नि का भोग दिया जाता है।
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