पैराणिक काल से जुड़े कई प्रसंग ऐसे हैं जिनसे आप आज भी अनजान हैं और वे बेहद ही हैरान करने वाले हैं। आज इस कड़ी में हम आपको भगवान श्रीकृष्ण के उस प्रसंग के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें उन्होनें अपने ही पुत्र को कोढ़ी होने का श्राप दे डाला। इसका उल्लेख भविष्य पुराण, स्कंद पुराण और वराह पुराण में। अब ऐसा क्यों हुआ, आइये जानते हैं इसके पीछे की कहानी के बारे में।
भगवान श्री कृष्ण के आठ रानिया थी। जिनमे से एक निषादराज जामवंत की पुत्री जामवंती थी। जामवंत उन गिने चुने पौराणिक पात्रो में से एक है जो रामायण और महाभारत दोनों काल में उपस्तिथ थे। ग्रंथों के अनुसार बहुमूल्य मणि हासिल करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण और जामवंत में 28 दिनों तक युद्ध चला था। युद्ध के दौरान जब जामवंत ने कृष्ण के स्वरूप को पहचान लिया तब उन्होंने मणि समेत अपनी पुत्री जामवंती का हाथ भी उन्हें सौंप दिया। कृष्ण और जामवंती के पुत्र का नाम ही सांबा था। देखने में वह इतना आकर्षक था कि कृष्ण की कई छोटी रानियां उसके प्रति आकृष्ट रहती थीं।
एक दिन कृष्ण की एक रानी ने सांबा की पत्नी का रूप धारण कर सांबा को आलिंगन में भर लिया। उसी समय कृष्ण ने ऐसा करते हुए देख लिया। क्रोधित होते हुए कृष्ण ने अपने ही पुत्र को कोढ़ी हो जाने और मृत्यु के पश्चात् डाकुओं द्वारा उसकी पत्नियों को अपहरण कर ले जाने का श्राप दिया।
पुराण में वर्णित है कि महर्षि कटक ने सांबा को इस कोढ़ से मुक्ति पाने हेतु सूर्य देव की अराधना करने के लिए कहा। तब सांबा ने चंद्रभागा नदी के किनारे मित्रवन में सूर्य देव का मंदिर बनवाया और 12 वर्षों तक उन्होंने सूर्य देव की कड़ी तपस्या की। उसी दिन के बाद से आजतक चंद्रभागा नदी को कोढ़ ठीक करने वाली नदी के रूप में ख्याति मिली है। मान्यता है कि इस नदी में स्नान करने वाले व्यक्ति का कोढ़ जल्दी ठीक हो जाता है।
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